जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजिएगा
ये भेद है अपनी ज़िन्दगी का बस इसकी चर्चा न कीजिएगा
इसी में है ख़ैर हज़रते-दिल! कि यार भूला हुआ है हमको
करे वो याद इसकी भूल कर भी कभी तमन्ना न कीजिएगा
कहे अगर कोई तुझसे वाइज़! कि कहते कुछ और करते हो कुछ
ज़माने की [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”आदत”]ख़ू[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] है [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”आलोचना”]नुक़्ताचीनी[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] , कुछ इसकी परवा न कीजिएगा