था रवानी से ही कायम उसकी हस्ती का सुबूत / अखिलेश तिवारी

था रवानी से ही कायम उसकी हस्ती का सुबूत गर ठहर जाता तो फिर दरिया कहाँ होने को था खुद को जो सूरज बताता फिर रहा था रात को दिन में उस जुगनू का अब चेहरा धुआं होने को था जाने क्यूँ पिंजरे की छत को आसमां कहने लगा वो परिंदा जिसका सारा आसमां होने… Continue reading था रवानी से ही कायम उसकी हस्ती का सुबूत / अखिलेश तिवारी

रोज़ बढती जा रही इन खाइयों का क्या करें / अखिलेश तिवारी

रोज़ बढती जा रही इन खाइयों का क्या करें भीड़ में उगती हुई तन्हाइयों का क्या करें हुक्मरानी हर तरफ बौनों की, उनका ही हजूम हम ये अपने कद की इन ऊचाइयों का क्या करें नाज़ तैराकी पे अपनी कम न था हमको मगर नरगिसी आँखों की उन गहराइयों का क्या करें