मैं कब से गोश-बर-आवाज़[1] हूँ पुकारो भी ज़मीं पर यह सितारे कभी उतारो भी मेरी गय्यूर[2] उमंगो, शबाब फानी है गुरूर-ए-इश्क़ का देरीना खेल हारो भी भटक रहा है धुन्धल्कों में कारवान-ए-ख़याल बस अब खुदा के लिए काकुलें[3] संवारो भी मेरी तलाश की मेराज[4] हो तुम्हीं लेकिन नकाब उठाओ, निशान-ए-सफ़र उभारो भी यह कायनात, अजल… Continue reading मैं कब से गोश बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी / अहमद नदीम क़ासमी
Category: Ahmad Nadeem Qasmi
जब तेरा हुक्म मिला / अहमद नदीम क़ासमी
जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी, दिल मगर उस पे वो धडका, कि क़यामत कर दी| तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता, लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी| मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले, तूने जाकर तो जुदाई मेरी कि़स्मत कर दी| मुझको दुश्मन के वादों पे… Continue reading जब तेरा हुक्म मिला / अहमद नदीम क़ासमी
लब-ए-ख़ामोश से अफ्शा होगा / अहमद नदीम क़ासमी
लब-ए-ख़ामोश से अफ्शा होगा राज़ हर रंग में रुस्वा होगा दिल के सहरा में चली सर्द हवा अबर् गुलज़ार पर बरसा होगा तुम नहीं थे तो सर-ए-बाम-ए-ख़याल याद का कोई सितारा होगा किस तवक्क़ो पे किसी को देखें कोई तुम से भी हसीं क्या होगा ज़ीनत-ए-हल्क़ा-ए-आग़ोश बनो दूर बैठोगे तो चर्चा होगा ज़ुल्मत-ए-शब में भी… Continue reading लब-ए-ख़ामोश से अफ्शा होगा / अहमद नदीम क़ासमी
शाम को सुबह-ए-चमन याद आई / अहमद नदीम क़ासमी
शाम को सुबह-ए-चमन याद आई, किसकी ख़ुश्बू-ए-बदन याद आई| जब ख़यालों में कोई मोड़ आया, तेरे गेसू की शिकन याद आई| याद आए तेरे पैकर के ख़ुतूत, अपनी कोताही-ए-फ़न याद आई| चांद जब दूर उफ़क़ पर डूबा, तेरे लहजे की थकन याद आई| दिन शुआओं से उलझते गुज़रा, रात आई तो किरन याद आई|
गुल तेरा रंग चुरा लाए हैं / अहमद नदीम क़ासमी
गुल तेरा रंग चुरा लाए हैं गुलज़ारों में जल रहा हूँ भरी बरसात की बौछारों में मुझसे कतरा के निकल जा, मगर ऐ जान-ए-हया दिल की लौ देख रहा हूं तेरे रुख़सारों में हुस्न-ए-बेगाना-ए-एहसास-जमाल अच्छा है ग़ुन्चे खिलते हैं तो बिक जाते हैं बाज़ारों में जि़क्र करते हैं तेरा मुझसे बाउनवान-ए-जफ़ा चारागर फूल पिरो लाए… Continue reading गुल तेरा रंग चुरा लाए हैं / अहमद नदीम क़ासमी
किस को क़ातिल / अहमद नदीम क़ासमी
किस को क़ातिल मैं कहूं किस को मसीहा समझूं सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूं वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूं दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूं ज़ुल्म… Continue reading किस को क़ातिल / अहमद नदीम क़ासमी
तुझे इज़हार-ए-मुहब्बत / अहमद नदीम क़ासमी
तुझे इज़हार-ए-मुहब्बत से अगर नफ़रत है तूने होठों के लरज़ने को तो रोका होता बे-नियाज़ी से, मगर कांपती आवाज़ के साथ तूने घबरा के मिरा नाम न पूछा होता तेरे बस में थी अगर मशाल-ए-जज़्बात की लौ तेरे रुख्सार में गुलज़ार न भड़का होता यूं तो मुझसे हुई सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें अपने टूटे हुए… Continue reading तुझे इज़हार-ए-मुहब्बत / अहमद नदीम क़ासमी
कौन कहता है / अहमद नदीम क़ासमी
कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा मैं तो दरिया हूं, समन्दर में उतर जाऊँगा तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा घर में घिर जाऊँगा, सहरा में बिखर जाऊँगा तेरे पहलू से जो उठूँगा तो मुश्किल ये है सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा, जिधर जाऊँगा अब तेरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर… Continue reading कौन कहता है / अहमद नदीम क़ासमी
तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहां तक देखूं / अहमद नदीम क़ासमी
तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ हुस्न-ए-यज़्दां[1] से तुझे हुस्न-ए-बुतां[2] तक देखूं तूने यूं देखा है जैसे कभी देखा ही न था मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशां तक देखूँ सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें मै तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयां तक देखूँ वक़्त ने ज़ेहन में धुंधला दिये… Continue reading तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहां तक देखूं / अहमद नदीम क़ासमी