गो मेरे दिल के ज़ख़्म ज़ाती हैं उनकी टीसें तो कायनाती हैं आदमी शशजिहात का दूल्हा वक़्त की गर्दिशें बराती हैं फ़ैसले कर रहे हैं अर्शनशीं आफ़तें आदमी पर आती हैं कलियाँ किस दौर के तसव्वुर में ख़ून होते ही मुस्कुराती हैं तेरे वादे हों जिनके शामिल-ए=हाल वो उमंगें कहाँ समाती हैं ज़ाती= निजी; कायनाती=… Continue reading गो मेरे दिल के ज़ख़्म जाती हैं / अहमद नदीम क़ासमी
Category: Ahmad Nadeem Qasmi
जेहनों में ख़याल जल रहे हैं / अहमद नदीम क़ासमी
जेहनों में ख़याल जल रहे हैं| सोचों के अलाव-से लगे हैं| दुनिया की गिरिफ्त में हैं साये, हम अपना वुजूद ढूंढते हैं| अब भूख से कोई क्या मरेगा, मंडी में ज़मीर बिक रहे हैं| माज़ी में तो सिर्फ़ दिल दुखते थे, इस दौर में ज़ेहन भी दुखे हैं| सिर काटते थे कभी शहनशाह, अब लोग… Continue reading जेहनों में ख़याल जल रहे हैं / अहमद नदीम क़ासमी
ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है / अहमद नदीम क़ासमी
ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है । साँस तलवार हुई जाती है | जिस्म बेकार हुआ जाता है, रूह बेदार हुई जाती है | कान से दिल में उतरती नहीं बात, और गुफ़्तार हुई जाती है | ढल के निकली है हक़ीक़त जब से, कुछ पुर-असरार हुई जाती है | अब तो हर ज़ख़्म की मुँहबन्द… Continue reading ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है / अहमद नदीम क़ासमी
अब तक तो / अहमद नदीम क़ासमी
अब तक तो नूर-ओ-निक़हत-ओ-रंग-ओ-सदा कहूँ, मैं तुझको छू सकूँ तो ख़ुदा जाने क्या कहूँ लफ़्ज़ों से उन को प्यार है मफ़हूम् से मुझे, वो गुल कहें जिसे मैं तेरा नक्श-ए-पा कहूँ अब जुस्तजू है तेरी जफ़ा के जवाज़ की, जी चाहता है तुझ को वफ़ा आशना कहूँ सिर्फ़ इस के लिये कि इश्क़ इसी का… Continue reading अब तक तो / अहमद नदीम क़ासमी
हैरतों के सिल-सिले / अहमद नदीम क़ासमी
हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न था आप किस की जुस्तजू में गुलिस्तां तक आ गए ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गिरेबां का शऊर आ जाएगा तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक… Continue reading हैरतों के सिल-सिले / अहमद नदीम क़ासमी
मुझे कल मेरा एक साथी मिला / अहमद नदीम क़ासमी
मुझे कल मेरा एक साथी मिला जिस ने ये राज़ खोला कि “अब जज्बा-ओ-शौक़ की वहशतों के ज़माने गए” फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता चारों तरफ़ देखता मुझ से कहने लगा “अब बिसात-ए-मुहब्बत लपेटो जहां से भी मिल जाएं दौलत – समटो ग़र्ज कुछ तो तहज़ीब सीखो”
रेत से बुत न बना / अहमद नदीम क़ासमी
रेत से बुत न बना मेरे अच्छे फ़नकार एक लम्हे को ठहर मैं तुझे पत्थर ला दूँ मैं तेरे सामने अम्बार लगा दूँ लेकिन कौन से रंग का पत्थर तेरे काम आएगा सुर्ख़ पत्थर जिसे दिल कहती है बेदिल दुनिया या वो पत्थराई हुई आँख का नीला पत्थर जिस में सदियों के तहय्युर के पड़े… Continue reading रेत से बुत न बना / अहमद नदीम क़ासमी
लबों पे नर्म तबस्सुम / अहमद नदीम क़ासमी
लबों पे नर्म तबस्सुम रचा कि धुल जाएँ ख़ुदा करे मेरे आंसू किसी के काम आएँ जो इब्तदा-ए-सफ़र में दिए बुझा बैठे वो बदनसीब किसी का सुराग़ क्या पाएँ तलाश-ए-हुस्न कहाँ ले चली ख़ुदा जाने उमंग थी कि फ़क़त जि़न्दगी को अपनाएँ बुला रहे है उफ़क़ पर जो ज़र्द-रू टीले कहो तो हम भी फ़साने… Continue reading लबों पे नर्म तबस्सुम / अहमद नदीम क़ासमी
वो कोई और न था / अहमद नदीम क़ासमी
वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे, शजर से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए थे| अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आया, अभी अभी तो हम एक दूसरे से बिछड़े थे| तुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डाली, कली कली में ख़िज़ां के चिराग़ जलते थे| तमाम उम्र वफ़ा… Continue reading वो कोई और न था / अहमद नदीम क़ासमी
मरूं तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊं / अहमद नदीम क़ासमी
मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ| नदीम! काश यही एक काम कर जाऊँ| ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास, जो इज़ाँ हो तो तेरी याद से गुज़र जाऊँ| मेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता है, तेरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊँ| तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर… Continue reading मरूं तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊं / अहमद नदीम क़ासमी