सागर किनारे / अज्ञेय

तनिक ठहरूँ। चाँद उग आए, तभी जाऊँगा वहाँ नीचे कसमसाते रुद्ध सागर के किनारे। चाँद उग आए। न उस की बुझी फीकी चाँदनी में दिखें शायद वे दहकते लाल गुच्छ बुरूँस के जो तुम हो। न शायद चेत हो, मैं नहीं हूँ वह डगर गीली दूब से मेदुर, मोड़ पर जिस के नदी का कूल… Continue reading सागर किनारे / अज्ञेय

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पावस-प्रात, शिलांग / अज्ञेय

भोर बेला। सिंची छत से ओस की तिप्-तिप्! पहाड़ी काक की विजन को पकड़ती-सी क्लांत बेसुर डाक- ‘हाक्! हाक्! हाक्!’ मत सँजो यह स्निग्ध सपनों का अलस सोना- रहेगी बस एक मुठ्ठी खाक! ‘थाक्! थाक्! थाक्!’

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शक्ति का उत्पात / अज्ञेय

क्रांति है आवर्त, होगी भूल उसको मानना धारा: विप्लव निज में नहीं उद्दिष्ट हो सकता हमारा। जो नहीं उपयोज्य, वह गति शक्ति का उत्पात भर है: स्वर्ग की हो-माँगती भागीरथी भी है किनारा।

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आशी:(वसंत का एक दिन) / अज्ञेय

फूल काँचनार के, प्रतीक मेरे प्यार के! प्रार्थना-सी अर्धस्फुट काँपती रहे कली, पत्तियों का सम्पुट, निवेदिता ज्यों अंजली। आए फिर दिन मनुहार के, दुलार के -फूल काँचनार के! सुमन-वृंत बावले बबूल के! झोंके ऋतुराज के वसंती दुकूल के, बूर बिखराता जा पराग अंगराग का, दे जा स्पर्श ममता की सिहरती आग का। आवे मत्त गंध… Continue reading आशी:(वसंत का एक दिन) / अज्ञेय

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आज थका हिय-हारिल मेरा / अज्ञेय

इस सूखी दुनिया में प्रियतम मुझ को और कहाँ रस होगा? शुभे! तुम्हारी स्मृति के सुख से प्लावित मेरा मानस होगा! दृढ़ डैनों के मार थपेड़े अखिल व्योम को वश में करता, तुझे देखने की आशा से अपने प्राणों में बल भरता, ऊषा से ही उड़ता आया, पर न मिल सकी तेरी झाँकी साँझ समय… Continue reading आज थका हिय-हारिल मेरा / अज्ञेय

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कहीं की ईंट / अज्ञेय

कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा कुनबे ने भानमती गढ़ी रेशम से भाँड़ी, सोने से मढ़ी कवि ने कथा गढ़ी, लोक ने बाँची कहो-भर तो झूठ, जाँचो तो साँची

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जियो, मेरे / अज्ञेय

जियो, मेरे आज़ाद देश की शानदार इमारतो जिनकी साहिबी टोपनुमा छतों पर गौरव ध्वज तिरंगा फहरता है लेकिन जिनके शौचालयों में व्यवस्था नहीं है कि निवृत्त होकर हाथ धो सकें। (पुरखे तो हाथ धोते थे न? आज़ादी ही से हाथ धो लेंगे, तो कैसा?) जियो, मेरे आज़ाद देश के शानदार शासको जिनकी साहिबी भेजे वाली… Continue reading जियो, मेरे / अज्ञेय

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नंदा देवी / अज्ञेय

नंदा, बीस-तीस-पचास वर्षों में तुम्हारी वनराजियों की लुगदी बनाकर हम उस पर अखबार छाप चुके होंगे तुम्हारे सन्नाटे को चीर रहे होंगे हमारे धुँधुआते शक्तिमान ट्रक, तुम्हारे झरने-सोते सूख चुके होंगे और तुम्हारी नदियाँ ला सकेंगी केवल शस्य-भक्षी बाढ़ें या आँतों को उमेठने वाली बीमारियाँ तुम्हारा आकाश हो चुका होगा हमारे अतिस्वन विमानों के धूम-सूत्रों… Continue reading नंदा देवी / अज्ञेय

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इशारे ज़िंदगी के / अज्ञेय

ज़िंदगी हर मोड़ पर करती रही हमको इशारे जिन्हें हमने नहीं देखा। क्योंकि हम बाँधे हुए थे पट्टियाँ संस्कार की और हमने बाँधने से पूर्व देखा था- हमारी पट्टियाँ रंगीन थीं ज़िंदगी करती रही नीरव इशारे : हम छली थे शब्द के। ‘शब्द ईश्वर है, इसी में वह रहस्य है : शब्द अपने आप में… Continue reading इशारे ज़िंदगी के / अज्ञेय

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नया कवि: आत्म स्वीकार / अज्ञेय

किसी का सत्य था, मैंने संदर्भ से जोड़ दिया। कोई मधु-कोष काट लाया था, मैंने निचोड़ लिया। किसी की उक्ति में गरिमा थी, मैंने उसे थोड़ा-सा सँवार दिया किसी की संवेदना में आग का-सा ताप था मैंने दूर हटते-हटते उसे धिक्कार दिया। कोई हुनरमंद था : मैंने देखा और कहा, ‘यों!’ थका भारवाही पाया- घुड़का… Continue reading नया कवि: आत्म स्वीकार / अज्ञेय

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