इस पुरानी जिन्दगी की जेल में जन्म लेता है नया मन। मुक्त नीलाकाश की लम्बी भुजाएँ हैं समेटे कोटि युग से सूर्य, शशि, नीहारिका के ज्योति-तन। यह दुखी संसृति हमारी, स्वप्न की सुन्दर पिटारी भी इसी को बाहुओं में आत्म-विस्मृत, सुप्त निज में ही सिमट लिपटी हुई है। किन्तु मन ब्रह्माण्ड इससे भी बड़ा है… Continue reading एक भावना / हरिनारायण व्यास
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उठे बादल, झुके बादल / हरिनारायण व्यास
उधर उस नीम की कलगी पकड़ने को झुके बादल। नयी रंगत सुहानी चढ़ रही है सब के माथे पर। उड़े बगुल, चले सारस, हरस छाया किसानों में। बरस भर की नयी उम्मीद छायी है बरसने के तरानों में। बरस जा रे, बरस जा ओ नयी दुनिया के सुख सम्बल। पड़े हैं खेत छाती चीर कर… Continue reading उठे बादल, झुके बादल / हरिनारायण व्यास