हाथ फैलाने के अंदाज़ सिखाता क्यूँ है राहतें दे के मुझे इतना झुकाता क्यूँ है खिड़कियाँ खोल कि मौसम का तुझे इल्म रहे बन्द कमरे की तरह ख़ुद को बनाता क्यूँ है तितलियाँ लगती हैं अच्छी जो उड़ें गुलशन में तू उन्हें मार के एलबम में सजाता क्यूँ है तू है तूफ़ान तो फिर राजमहल… Continue reading हाथ फैलाने अंदाज़ सिखाता क्यूँ है / ज्ञान प्रकाश विवेक
Category: Gyan Prakash Vivek
वो किसी बात का चर्चा नहीं होने देता / ज्ञान प्रकाश विवेक
वो किसी बात का चर्चा नहीं होने देता अपने ज़ख्मों का वो जलसा नहीं होने देता ऐसे कालीन को मैं किस लिए रक्खूँ घर में वो जो आवाज़ को पैदा नहीं होने देता यह बड़ा शहर गले सब को लगा लेता है पर किसी शख़्स को अपना नहीं होने देता उसकी फ़ितरत में यही बात… Continue reading वो किसी बात का चर्चा नहीं होने देता / ज्ञान प्रकाश विवेक