नदी बोलेगी / ज्ञान प्रकाश चौबे

मेरी चुप्पी नदी की चुप्पी नहीं है जंगलों में पेड़ों की तादाद धूप की गर्मी से कम है मेरे हिस्से की हवा माँ के बुने स्वेटर की साँस से कम है बादल छुपे हैं यहीं कहीं सेमल के पीछे मेरे हिस्से की धूप लेकर फूल हँस रहे हैं वो सब जानते हैं ज़िन्दगी की एक-एक… Continue reading नदी बोलेगी / ज्ञान प्रकाश चौबे

प्रेम को बचाते हुए / ज्ञान प्रकाश चौबे

मैंने उसे एक चिट्ठी लिखी जिसमें नम मिट्टी के साथ मखमली घास थी घास पर एक टिड्डा बैठा था पूरी हरियाली को अपने में समेटे हुए जाड़े की चटकीली धूप से लिखा उसमें तुम्हें भूला नही हूँ तुम्हारा चेहरा बादलों के पीछे अक्सर दिखाई देता है तुम्हारी हँसी हँसता हूँ गाता हूँ तुम्हारे लिखे गीत… Continue reading प्रेम को बचाते हुए / ज्ञान प्रकाश चौबे