पीछे / गोपालदास “नीरज”

गुमनामियों मे रहना, नहीं है कबूल मुझको चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे.. वो दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे.. अब “दोस्त” मैं कहूं या, उनको कहूं मैं “दुश्मन” जो मुस्कुरा रहे हैं,खंजर छुपा के अपने पीछे.. तुम चांद बनके जानम, इतराओ चाहे जितना… Continue reading पीछे / गोपालदास “नीरज”

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था / गोपालदास “नीरज”

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था| तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था। इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में, खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था। मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में, कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न… Continue reading दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था / गोपालदास “नीरज”

हम तेरी चाह में, ऐ यार ! वहाँ तक पहुँचे / गोपालदास “नीरज”

हम तेरी चाह में, ऐ यार ! वहाँ तक पहुँचे । होश ये भी न जहाँ है कि कहाँ तक पहुँचे । इतना मालूम है, ख़ामोश है सारी महफ़िल, पर न मालूम, ये ख़ामोशी कहाँ तक पहुँचे । वो न ज्ञानी ,न वो ध्यानी, न बिरहमन, न वो शेख, वो कोई और थे जो तेरे… Continue reading हम तेरी चाह में, ऐ यार ! वहाँ तक पहुँचे / गोपालदास “नीरज”

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से / गोपालदास “नीरज”

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई चाह तो… Continue reading स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से / गोपालदास “नीरज”

चलते-चलते थक गए पैर / गोपालदास “नीरज”

चलते-चलते थक गए पैर फिर भी चलता जाता हूँ! पीते-पीते मुँद गए नयन फिर भी पीता जाता हूँ! झुलसाया जग ने यह जीवन इतना कि राख भी जलती है, रह गई साँस है एक सिर्फ वह भी तो आज मचलती है, क्या ऐसा भी जलना देखा- जलना न चाहता हूँ लेकिन फिर भी जलता जाता… Continue reading चलते-चलते थक गए पैर / गोपालदास “नीरज”

उनकी याद हमें आती है / गोपालदास “नीरज”

मधुपुर के घनश्याम अगर कुछ पूछें हाल दुखी गोकुल का उनसे कहना पथिक कि अब तक उनकी याद हमें आती है। बालापन की प्रीति भुलाकर वे तो हुए महल के वासी, जपते उनका नाम यहाँ हम यौवन में बनकर संन्यासी सावन बिना मल्हार बीतता, फागुन बिना फाग कट जाता, जो भी रितु आती है बृज… Continue reading उनकी याद हमें आती है / गोपालदास “नीरज”

सारा जग मधुबन लगता है / गोपालदास “नीरज”

दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है। रोम-रोम में खिले चमेली साँस-साँस में महके बेला, पोर-पोर से झरे मालती अँग-अँग जुड़े जुही का मेला पग-पग लहरे मानसरोवर, डगर-डगर छाया कदम्ब की तुम जब से मिल गए उमर का खँडहर राजभवन… Continue reading सारा जग मधुबन लगता है / गोपालदास “नीरज”

गीत / गोपालदास “नीरज”

विश्व चाहे या न चाहे, लोग समझें या न समझें, आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे। हर नज़र ग़मगीन है, हर होठ ने धूनी रमाई, हर गली वीरान जैसे हो कि बेवा की कलाई, ख़ुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों में कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ाई,… Continue reading गीत / गोपालदास “नीरज”

नीरज दोहावली / गोपालदास “नीरज”

1 हे गणपति निज भक्त को, दो ऐसी निज भक्ति काव्य सृजन में ही रहे, जीवन-भर अनुरक्ति। 2 हे लम्बोदर है तुम्हें, बारंबार प्रणाम पूर्ण करो निर्विघ्न प्रभु ! सकल हमारे काम। 3 मेरे विषय-विकार जो, बने हृदय के शूल हे प्रभु मुझ पर कृपा कर, करो उन्हें निर्मूल। 4 गणपति महिमा आपकी, सचमुच बहुत… Continue reading नीरज दोहावली / गोपालदास “नीरज”

कानपुर के नाम / गोपालदास “नीरज”

कानपुर! आह!आज याद तेरी आई फिर स्याह कुछ और मेरी रात हुई जाती है, आँख पहले भी यह रोई थी बहुत तेरे लिए अब तो लगता है कि बरसात हुई जाती है. तू क्या रूठा मेरे चेहरे का रंग रूठ गया तू क्या छूटा मेरे दिल ने ही मुझे छोड़ दिया, इस तरह गम में… Continue reading कानपुर के नाम / गोपालदास “नीरज”