अब तो मुझे न और रुलाओ! रोते-रोते आँखें सूखीं, हृदय-कमल की पाँखें सूखीं, मेरे मरु-से जीवन में तुम मत अब सरस सुधा बरसाओ! अब तो मुझे न और रुलाओ! मुझे न जीवन की अभिलाषा, मुझे न तुमसे कुछ भी आशा, मेरी इन तन्द्रिल पलकों पर मत स्वप्निल संसार सजाओ! अब तो मुझे न और रुलाओ!… Continue reading अब तो मुझे / गोपालदास “नीरज”
Category: Gopaldas Neeraj
क्यों कोई मुझसे प्यार करे / गोपालदास “नीरज”
क्यों कोई मुझसे प्यार करे! अपने मधु-घट को ठुकरा कर मैंने जग के विषपान किए ले लेकर खुद अभिशाप हाय, मैंने जग को वरदान दिए फ़िर क्यों न विश्व मुझको पागल कहकर मेरा सत्कार करे। क्यों कोई मुझसे प्यार करे! उर-ज्वाला से मेरा परिणय दु:ख का ताण्डव जीवन-अभिनय फ़िर शान्ति और सुख मेरे मानस में… Continue reading क्यों कोई मुझसे प्यार करे / गोपालदास “नीरज”
गान समझता / गोपालदास “नीरज”
मैं रोदन ही गान समझता! उर-पीड़ा के अभिशापित दल जो नयनों में रहते प्रतिपल- आँसू के दो-चार क्षार कण, आज इन्हें वरदान समझता। मैं रोदन ही गान समझता! दुर्बल मन का अलस भाव जो- अपने से अपना दुराव जो- निज को ही विस्मृत कर देना आज श्रेष्ठतम ज्ञान समझता। मैं रोदन ही गान समझता! अपनी… Continue reading गान समझता / गोपालदास “नीरज”
रोने वाला ही गाता है / गोपालदास “नीरज”
रोने वाला ही गाता है! मधु-विष हैं दोनों जीवन में दोनों मिलते जीवन-क्रम में पर विष पाने पर पहले मधु-मूल्य अरे, कुछ बढ़ जाता है। रोने वाला ही गाता है! प्राणों की वर्त्तिका बनाकर ओढ़ तिमिर की काली चादर जलने वाला दीपक ही तो जग का तिमिर मिटा पाता है। रोने वाला ही गाता है!… Continue reading रोने वाला ही गाता है / गोपालदास “नीरज”
तिमिर का छोर / गोपालदास “नीरज”
है नहीं दिखता तिमिर का छोर! आँख की गति है जहाँ तक तम अरे, बस, तम वहाँ तक दूर धुँधली दिख रही पर सित कफ़न की कोर। है नहीं दिखता तिमिर का छोर! खो गया है लक्ष्य तम में धुँध-धुँधलापन नयन में और पड़ते जा रहे हैं पैर भी कमजोर। है नहीं दिखता तिमिर का… Continue reading तिमिर का छोर / गोपालदास “नीरज”
तब याद किसी की / गोपालदास “नीरज”
तब याद किसी की आती है! मधुकर गुन-गुन धुन सुन क्षण भर कुछ अलसा कर, कुछ शरमा कर जब कमल-कली धीरे-धीरे निज घूँघट-पट खिसकाती है। तब याद किसी की आती है! आँगन के तरू की फ़ुनगी पर दो तिनके सजा-सजा कर धर जब कोई चिड़िया एकाकी निज उजड़ा नीड़ बसाती है। तब याद किसी की… Continue reading तब याद किसी की / गोपालदास “नीरज”
क्यों रुदनमय हो न उसका गान / गोपालदास “नीरज”
क्यों रुदनमय हो न उसका गान! मृत्यु का ही कर भयंकर भग्न छाती पर अरे घर पूर्ण जो कर सके अपने हृदय के अरमान। क्यों रुदनमय हो न उसका गान! क्या करेगी शान्त उसका हृदय-मदिरा की मधुरता शान्ति केवल पा सके जो उर बना पाषाण। क्यों रुदनमय हो न उसका गान! क्या हृदय-अभिलाषा उसकी और… Continue reading क्यों रुदनमय हो न उसका गान / गोपालदास “नीरज”
मैं तुम्हारी, तुम हमारे / गोपालदास “नीरज”
मैं तुम्हारी तुम हमारे! नयन में निज नयन भर कर अधर पर सुमधुर अधर धर साध कर स्वर, साध कर उर एक दिन तुमने कहा था प्रेम-गंगा के किनारे। मैं तुम्हारी तुम हमारे! था कथित उर-प्यार हारा मौन था संसार सारा सुन रहा था सरित-जल, सब मुस्कुराते चाँद-तारे। मैं तुम्हारी तुम हमारे! अब कहीं तुम,… Continue reading मैं तुम्हारी, तुम हमारे / गोपालदास “नीरज”
तब किसी की याद आती / गोपालदास “नीरज”
तब किसी की याद आती! पेट का धन्धा खत्म कर लौटता हूँ साँझ को घर बन्द घर पर, बन्द ताले पर थकी जब आँख जाती। तब किसी की याद आती! रात गर्मी से झुलसकर आँख जब लगती न पलभर और पंखा डुलडुलाकर बाँह थक-थक शीघ्र जाती। तब किसी की याद आती! अश्रु-कण मेरे नयन में… Continue reading तब किसी की याद आती / गोपालदास “नीरज”
भूल जाना / गोपालदास “नीरज”
भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना! साथ देखा था कभी जो एक तारा आज भी अपनी डगर का वो सहारा आज भी हैं देखते हम तुम उसे पर है हमारे बीच गहरी अश्रु-धारा नाव चिर जर्जर नहीं पतवार कर में किस तरह फ़िर हो तुम्हारे पास आना। भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना!… Continue reading भूल जाना / गोपालदास “नीरज”