इन पहाड़ों पर….-1 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

तवांग के ख़ूबसूरत पहाड़ों से उपजते हुए… सामने पहाड़ दिनभर बादलों के तकिए पर सर रखे ऊँघते हैं और सूरज रखता है उनके माथे पर नरम-नरम गुलाबी होंठ तेज़ हवाओं में बादलों के रोएँ उठते हैं धुएँ की तरह… फिर भी कोई बादल तो छूट ही जाता है किसी दिन तनहा बिजली की तार पर… Continue reading इन पहाड़ों पर….-1 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’