एक पैसे में… / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

सुबह बहुत उदास थी और मेरे भाड़े के कमरे में धूप के तंतु ओढ़े दूर तक पसर आई थी कोई किसी से कुछ नहीं कह रहा था दरवाज़े के बाहर की चिड़िया भी रेलिंग पर हिलती डुलती खामोश बैठी थी और हवा का संवादहीन शोर एक निरर्थक सायरन की तरह बज रहा था जबकि मैं… Continue reading एक पैसे में… / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

तुम हो… / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

तुम एक सुन्दर बियावान जंगल हो जिसके ख़ूब भीतर रहना चाहता हूँ मैं.. एक आदिम मनुष्य की तरह नग्न.. भग्न.. अकेला..

अप्रैल-फूल / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

सिर्फ़ तुम्हारी बदौलत भर गया था अप्रैल विराट उजाले से हो रही थी बरसात अप्रैल की एक ख़ूबसूरत सुबह में चाँद के चेहरे पर नहीं थी थकावट रातों के सिलसिले में एक इन्द्रधनुष टँग गया था अप्रैल की शाम में एक सूखे दरख़्त की फुनगी में मंदिर की घंटियाँ गिरजे की कैंडल्स और मस्जिद की… Continue reading अप्रैल-फूल / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

लड़नेवाले लोग / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

हर दौर में कुछ ऐसे लोग होते रहे जो लोगों की आँखों में आँच फूँकने की कला में माहिर थे ऐसे लोग हर युग में नियंता बने और उन लोगों के माथों पर असंतोष की लकीरें खींचते रहे जिनके चेहरे पर एक चिर अभावग्रस्त उदासी थी उन चंद लोगों ने उन अधिकाँश लोगों की सेनाएँ… Continue reading लड़नेवाले लोग / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

मुखौटे / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

उस समय में जब दुनिया में चारों तरफ़ मुखौटों की भर्त्सना की जा रही थी हर घर की दीवारों पर टँगे मुखौटे बहुत उदास थे क्योंकि सिर्फ़ वे जानते थे कि वे बिलकुल भी ग़लत नहीं थे कि उनके पीछे कोई चाक़ू कोई हथियार नहीं छुपे थे बल्कि उन्होंने तो दी थी कईयों को जीवित… Continue reading मुखौटे / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

मोक्ष / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

कुछ चीज़ें चाहीं ज़िन्दगी में हमेशा पूरी की पूरी जो कभी पूरी न हो सकीं जैसे दो क्षितिजों के बीच नपा-तुला आकाश और कुछ वासनाएँ अतृप्त जो लार बनकर गले के कोटर में उलझतीं रहीं आपस में गुत्थम-गुत्थ मैं रहा निर्वाक, निर्लेप उँगलियों से नहीं बनाया एक भी अधूरा चित्र नहीं लिखी अबूझ क्रमशः के… Continue reading मोक्ष / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

बचाया जाना चाहिए तुम्हें / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

जबकि पूरी दुनिया की जवान लड़कियों की आँखों में एक मासूम बच्चे की ह्त्या हो चुकी थी मैंने देखा तुम्हारे मन तुम्हारे शरीर और तुम्हारी आत्मा में किलकारियाँ लेता एक बच्चा… इस ग्लोबल युग की यह सबसे बड़ी परिघटना है जगह मिलनी चाहिए इसे गिनीज़ बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में सबसे बड़े जीवित करिश्मे की… Continue reading बचाया जाना चाहिए तुम्हें / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

याद / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

कभी कभी बहुत याद आती है इतनी ज़्यादा याद आती है कि मन करता है कि आँख में खंज़र कुरेद-कुरेद कर इस कदर रोऊँ की यह पूरी दुनिया बाढ़ की नदी में आए झोंपड़े की तरह बह जाए लेकिन फिर चौकड़ी मारकर बैठता हूँ और पलटता हूँ पुरानी डायरियाँ आख़िरकार हर “न” से परेशान हो… Continue reading याद / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

इन पहाड़ों पर….-3 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

तवांग के ख़ूबसूरत पहाड़ों से उपजते हुए… वो आसमान जिसने भरे हुए महानगर में दौड़ाया था मुझे जो अपने महत्त्वाकाँक्षी दरातों से रोज़ मेरी आत्मा में एक खाई चीरता था और जो जब शुरू होता था तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता था यहाँ आकर देखा मैंने वह पहाड़ों के कन्धों पर एक… Continue reading इन पहाड़ों पर….-3 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

इन पहाड़ों पर….-2 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

तवांग के ख़ूबसूरत पहाड़ों से उपजते हुए… आगे – पीछे ऊपर – नीचे और तो और बीच में भी पहाड़ ही है जिसपर मैं इस वक़्त बैठा हुआ हूँ सोते – जागते बाहर – भीतर पहाड़ ही पहाड़ नज़र आते हैं बड़े – बड़े बीहड़ पहाड़… पहाड़, जिनसे मैंने ज़िन्दगी भर प्यार किया गड्ड-मड्ड हो… Continue reading इन पहाड़ों पर….-2 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’