मीत सुजान अनीत करौ जिन / घनानंद

सवैया मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही। डीठि कौ और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही। एक बिसास की टेक गहे लगि आस रहे बसि प्रान-बटोही। हौं घनआनँद जीवनमूल दई कित प्यासनि मारत मोही।। 9 ।।

हीन भएँ जल मीन अधीन / घनानंद

सवैया हीन भएँ जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समाने। नीर सनेही कों लाय अलंक निरास ह्वै कायर त्यागत प्रानै। प्रीति की रीति सु क्यों समुझै जड़ मीत के पानि परें कों प्रमानै। या मन की जु दसा घनआनँद जीव की जीवनि जान ही जानै।। 8 ।।

भए अति निठुर / घनानंद

भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी, याही दुख में हमैं जक लागी हाय हाय है। तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि, हमैं सूल सेलनि सो क्योहूँन भुलाय है। मीठे मीठे बोल बोलि ठगी पहिलें तौ तब, अब जिय जारत कहौ धौ कौन न्याय है। सुनी है कै नाहीं, यह प्रगट कहावति जू, काहू कलपायहै… Continue reading भए अति निठुर / घनानंद

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति / घनानंद

सवैया भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरी नेकु न हारति। साँझ तें भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति। जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद आँसुनि औसर गारति। मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।। 6 ।।

जासों प्रीति ताहि निठुराई / घनानंद

जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह, कैसे करि जिय की जरनि सो जताइये। महा निरदई दई कैसें कै जिवाऊँ जीव, बेदन की बढ़वारि कहाँ लौं दुराइयै। दुख को बखान करिबै कौं रसना कै होति, ऐपै कहूँ बाको मुख देखन न पाइयै। रैन दिन चैन को न लेस कहूँ पैये भाग, आपने ही ऐसे दोष… Continue reading जासों प्रीति ताहि निठुराई / घनानंद

छवि को सदन मोद मंडित / घनानंद

छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद तृषित चषनि लाल, कबधौ दिखाय हौ। चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही मुरली अधर धरे लटकत आय हौ। लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्याय, नेह भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ। बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रान प्यारे, कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।

झलकै अति सुन्दर आनन गौर / घनानंद

सवैया झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै। हँसि बोलनि मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै। लट लोल कपोल कलोल करैं, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै। अंग अंग तरंग उठै दुति की, परिहे मनौ रूप अबै धर च्वै।।4।।

लाजनि लपेटि चितवनि / घनानंद

लाजनि लपेटि चितवनि भेद-भाय भरी लसति ललित लोल चख तिरछानि मैं। छबि को सदन गोरो भाल बदन, रुचिर, रस निचुरत मीठी मृदु मुसक्यानी मैं। दसन दमक फैलि हमें मोती माल होति, पिय सों लड़कि प्रेम पगी बतरानि मैं। आनँद की निधि जगमगति छबीली बाल, अंगनि अनंग-रंग ढुरि मुरि जानि मैं।

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै / घनानंद

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है। वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन, वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है। वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि, वहै छैलताई न छिनक बिसरति है। आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की, सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।।

प्रिया प्रसाद / घनानंद

राधा राधा राधा कहौं । कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥ राधा जानौं राधा मानौं । मन राधा रस ही मैं सानौं ॥२॥ राधा जीवन राधा प्रान । राधा ही राधा गुनगान ॥३॥ राधा वृन्दावन की रानी । राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥ राधा व्रज जीवन की ज्यारी । राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥ राधा… Continue reading प्रिया प्रसाद / घनानंद