सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल / छीतस्वामी

सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल, मिटिहैं जंजाल सकल निरखत सँग गोप बाल। मोर मुकुट सीस धरे, बनमाला सुभग गरे, सबको मन हरे देख कुंडल की झलक गाल॥ आभूषन अंग सोहे, मोतिन के हार पोहे, कंठ सिरि मोहे दृग गोपी निरखत निहाल। ‘छीतस्वामी’ गोबर्धन धारी कुँवर नंद सुवन, गाइन के पाछे-पाछे धरत हैं… Continue reading सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल / छीतस्वामी

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आगे गाय पाछें गाय इत गाय उत गाय / छीतस्वामी

आगे गाय पाछें गाय इत गाय उत गाय, गोविंद को गायन में बसबोइ भावे। गायन के संग धावें, गायन में सचु पावें, गायन की खुर रज अंग लपटावे॥ गायन सो ब्रज छायो, बैकुंठ बिसरायो, गायन के हेत गिरि कर ले उठावे। ‘छीतस्वामी’ गिरिधारी, विट्ठलेश वपुधारी, ग्वारिया को भेष धरें गायन में आवे॥

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