कुछ छंद / चंदबरदाई

१. ‘चन्द’ प्यारो मितु, कहो क्यों पाईऐ करहु सेवा तिंह नित, नहिं चितह भुलाईऐ गुनि जन कहत पुकार, भलो या जीवनो हो बिन प्रीतम केह काम, अमृत को पीवनो। २. अंतरि बाहरि ‘चन्द’ एक सा होईऐ मोती पाथर एक, ठउर नहिं पाईऐ हिये खोटु तन पहर, लिबास दिखाईऐ हो परगटु होइ निदान, अंत पछुताईऐ। ३.… Continue reading कुछ छंद / चंदबरदाई

तन तेज तरनि ज्यों घनह ओप / चंदबरदाई

तन तेज तरनि ज्यों घनह ओप . प्रगटी किरनि धरि अग्नि कोप . चन्दन सुलेप कस्तूर चित्र . नभ कमल प्रगटी जनु किरन मित्र. जनु अग्निं नग छवि तन विसाल . रसना कि बैठी जनु भ्रमर व्याल . मर्दन कपूर छबि अंग हंति . सिर रची जानि बिभूति पंति . कज्जल सुरेष रच नेन संति… Continue reading तन तेज तरनि ज्यों घनह ओप / चंदबरदाई

प्रन्म्म प्रथम मम आदि देव / चंदबरदाई

प्रन्म्म प्रथम मम आदि देव ऊंकार सब्द जिन करि अछेव निरकार मध्य साकार कीन मनसा विलास सह फल फलीन बरन्यौ आदि-करता अलेख गुन सहित गुननि नह रूप रेख जिहि रचे सुरग भूसत पताल जम ब्रम्ह इन्द्र रिषी लोकपाल असि-लक्ख-चार रच जीव जंत बरनंत ते न लहों अंत करि सके न कोई अग्याहि भंग धरि हुकुम… Continue reading प्रन्म्म प्रथम मम आदि देव / चंदबरदाई

पद्मावती / चंदबरदाई

पूरब दिसि गढ गढनपति, समुद-सिषर अति द्रुग्ग। तहँ सु विजय सुर-राजपति, जादू कुलह अभग्ग॥ हसम हयग्गय देस अति, पति सायर म्रज्जाद। प्रबल भूप सेवहिं सकल, धुनि निसाँन बहु साद॥ धुनि निसाँन बहुसाद नाद सुर पंच बजत दिन। दस हजार हय-चढत हेम-नग जटित साज तिन॥ गज असंष गजपतिय मुहर सेना तिय सक्खह। इक नायक, कर धरि… Continue reading पद्मावती / चंदबरदाई

पृथ्वीराज रासो / चंदबरदाई

पद्मसेन कूँवर सुघर ताघर नारि सुजान। ता उर इक पुत्री प्रकट, मनहुँ कला ससभान॥ मनहुँ कला ससभान कला सोलह सो बन्निय। बाल वैस, ससि ता समीप अम्रित रस पिन्निय॥ बिगसि कमल-स्रिग, भ्रमर, बेनु, खंजन, म्रिग लुट्टिय। हीर, कीर, अरु बिंब मोति, नष सिष अहि घुट्टिय॥ छप्पति गयंद हरि हंस गति, बिह बनाय संचै सँचिय। पदमिनिय… Continue reading पृथ्वीराज रासो / चंदबरदाई