जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे / भारत भूषण

जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे ढूँढते फिरोगे लाखों में फिर कौन सामने बैठेगा बंगाली भावुकता पहने दूरों दूरों से लाएगा केशों को गंधों के गहने ये देह अजंता शैली सी किसके गीतों में सँवरेगी किसकी रातें महकाएँगी जीने के मोड़ों की छुअनें फिर चाँद उछालेगा पानी किसकी समुंदरी आँखों में दो दिन में ही… Continue reading जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे / भारत भूषण

जैसे पूजा में आँख भरे / भारत भूषण

जैसे पूजा में आँख भरे झर जाय अश्रु गंगाजल में ऐसे ही मैं सिसका सिहरा बिखरा तेरे वक्षस्थल में! रामायण के पारायण सा होठों को तेरा नाम मिला उड़ते बादल को घाटी के मंदिर में जा विश्राम मिला ले गये तुम्हारे स्पर्श मुझे अस्ताचल से उदयाचल में! मैं राग हुआ तेरे मनका यह देह हुई… Continue reading जैसे पूजा में आँख भरे / भारत भूषण

मन! कितना अभिनय शेष रहा / भारत भूषण

मन! कितना अभिनय शेष रहा सारा जीवन जी लिया, ठीक जैसा तेरा आदेश रहा! बेटा, पति, पिता, पितामह सब इस मिट्टी के उपनाम रहे जितने सूरज उगते देखो उससे ज्यादा संग्राम रहे मित्रों मित्रों रसखान जिया कितनी भी चिंता, क्लेश रहा! हर परिचय शुभकामना हुआ दो गीत हुए सांत्वना बना बिजली कौंधी सो आँख लगीं… Continue reading मन! कितना अभिनय शेष रहा / भारत भूषण

हर ओर कलियुग के चरण / भारत भूषण

हर ओर कलियुग के चरण मन स्मरणकर अशरण शरण। धरती रंभाती गाय सी अन्तोन्मुखी की हाय सी संवेदना असहाय सी आतंकमय वातावरण। प्रत्येक क्षण विष दंश है हर दिवस अधिक नृशंस है व्याकुल परम् मनु वंश है जीवन हुआ जाता मरण। सब धर्म गंधक हो गये सब लक्ष्य तन तक हो गये सद्भाव बन्धक हो… Continue reading हर ओर कलियुग के चरण / भारत भूषण

लो एक बजा दोपहर हुई / भारत भूषण

लो एक बजा दोपहर हुई चुभ गई हृदय के बहुत पास फिर हाथ घड़ी की तेज सुई पिघली सड़कें झरती लपटें झुँझलाईं लूएँ धूल भरी किसने देखा किसने जाना क्यों मन उमड़ा क्यों आँख चुई रिक्शेवालों की टोली में पत्ते कटते पुल के नीचे ले गई मुझे भी ऊब वहीं कुछ सिक्के मुट्ठी में भींचे… Continue reading लो एक बजा दोपहर हुई / भारत भूषण

राम की जल समाधि / भारत भूषण

पश्चिम में ढलका सूर्य उठा वंशज सरयू की रेती से, हारा-हारा, रीता-रीता, निःशब्द धरा, निःशब्द व्योम, निःशब्द अधर पर रोम-रोम था टेर रहा सीता-सीता। किसलिए रहे अब ये शरीर, ये अनाथमन किसलिए रहे, धरती को मैं किसलिए सहूँ, धरती मुझको किसलिए सहे। तू कहाँ खो गई वैदेही, वैदेही तू खो गई कहाँ, मुरझे राजीव नयन… Continue reading राम की जल समाधि / भारत भूषण

फिर फिर बदल दिये कैलेण्डर / भारत भूषण

फिर फिर बदल दिये कैलेण्डर तिथियों के संग संग प्राणों में लगा रेंगने अजगर सा डर सिमट रही साँसों की गिनती सुइयों का क्रम जीत रहा है! पढ़कर कामायनी बहुत दिन मन वैराग्य शतक तक आया उतने पंख थके जितनी भी दूर दूर नभ में उड़ आया अब ये जाने राम कि कैसा अच्छा बुरा… Continue reading फिर फिर बदल दिये कैलेण्डर / भारत भूषण

मेरी नींद चुराने वाले / भारत भूषण

मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए पूनम वाला चांद तुझे भी सारी-सारी रात जगाए तुझे अकेले तन से अपने, बड़ी लगे अपनी ही शैय्या चित्र रचे वह जिसमें, चीरहरण करता हो कृष्ण-कन्हैया बार-बार आँचल सम्भालते, तू रह-रह मन में झुंझलाए कभी घटा-सी घिरे नयन में, कभी-कभी फागुन बौराए मेरी नींद चुराने… Continue reading मेरी नींद चुराने वाले / भारत भूषण

मैं हूँ बनफूल / भारत भूषण

मैं हूँ बनफूल भला मेरा कैसा खिलना, क्या मुरझाना मैं भी उनमें ही हूँ जिनका, जैसा आना वैसा जाना सिर पर अंबर की छत नीली, जिसकी सीमा का अंत नहीं मैं जहाँ उगा हूँ वहाँ कभी भूले से खिला वसंत नहीं ऐसा लगता है जैसे मैं ही बस एक अकेला आया हूँ मेरी कोई कामिनी… Continue reading मैं हूँ बनफूल / भारत भूषण

धरती के काग़ज़ पर मेरी, तस्वीर अधूरी रहनी थी / भारत भूषण

तू मन अनमना न कर अपना, इसमें कुछ दोष नहीं तेरा धरती के काग़ज़ पर मेरी, तस्वीर अधूरी रहनी थी रेती पर लिखे नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था मलयानिल के बहकाने पर, बस एक प्रभात निखरना था गूंगे के मनोभाव जैसे, वाणी स्वीकार न कर पाए ऐसे ही मेरा हृदय-कुसुम, असमर्पित सूख बिखरना… Continue reading धरती के काग़ज़ पर मेरी, तस्वीर अधूरी रहनी थी / भारत भूषण