लोगों हम छान चुके जा के संमुदर सारे / बशीर फ़ारूक़ी

लोगों हम छान चुके जा के संमुदर सारे उस ने मुट्ठी में छुपा रक्खे हैं गौहर सारे ज़ख़्म-ए-दिल जाग उठे फिर वही दिन यार आए फिर तसव्वुर पे उभर आए वो मंज़र सारे तिश्नगी मेरी अजब रेत का मंज़र निकली मेरे होंठों पे हुए ख़ुश्क समुंदर सारे उस को ग़मगीन जो पाया तो मैं कुछ… Continue reading लोगों हम छान चुके जा के संमुदर सारे / बशीर फ़ारूक़ी

अब के जुनूँ में लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं / बशीर फ़ारूक़ी

अब के जुनूँ में लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं ज़ख़्म-ए-जिगर में सुर्ख़ी-ए-रूख़सार भी नहीं हम तेरे पास आ के परेशान हैं बहुत हम तुझ से दूर रहने को तय्यार भी नहीं ये हुक्म है कि सौंप दो नज़्म-ए-चमन उन्हें नज़्म-ए-चमन से जिन को सरोकार भी नहीं तोड़ा है उस ने दिल को मिरे कितने हुस्न से आवाज़… Continue reading अब के जुनूँ में लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं / बशीर फ़ारूक़ी