आवारा सजदे / कैफ़ी आज़मी

इक यही सोज़-ए-निहाँ कुल मेरा सरमाया है दोस्तो मैं किसे ये सोज़-ए-निहाँ नज़र करूँ कोई क़ातिल सर-ए-मक़्तल नज़र आता ही नहीं किस को दिल नज़र करूँ और किसे जाँ नज़र करूँ? तुम भी महबूब मेरे तुम भी हो दिलदार मेरे आशना मुझ से मगर तुम भी नहीं तुम भी नहीं ख़त्म है तुम पे मसीहानफ़सी… Continue reading आवारा सजदे / कैफ़ी आज़मी

आज सोचा तो आँसू भर आए / कैफ़ी आज़मी

आज सोचा तो आँसू भर आए मुद्दतें हो गईं मुस्कुराए हर कदम पर उधर मुड़ के देखा उनकी महफ़िल से हम उठ तो आए दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं याद इतना भी कोई न आए रह गई ज़िंदगी दर्द बनके दर्द दिल में छुपाए छुपाए

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है / कैफ़ी आज़मी

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है, आज की रात न फ़ुटपाथ पे नींद आएगी, सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो, कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी । ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थी, पाँव जब टूटती शाखों से उतारे हमने, इन मकानों को ख़बर… Continue reading आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है / कैफ़ी आज़मी

अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ / कैफ़ी आज़मी

अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ, लहू तो नहीं ये कोई और जगह है ये लखनऊ तो नहीं यहाँ तो चलती हैं छुरिया ज़ुबाँ से पहले ये मीर अनीस की, आतिश की गुफ़्तगू तो नहीं चमक रहा है जो दामन पे दोनों फ़िरक़ों के बग़ौर देखो ये इस्लाम का लहू तो नहीं

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर / कैफ़ी आज़मी

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो मुझ से बिखरे हुये गेसू नहीं देखे जाते सुर्ख़ आँखों की क़सम काँपती पलकों की क़सम थर-थराते हुये आँसू नहीं देखे जाते अब तुम [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”सपनों का आलिंगन”]आग़ोश-ए-तसव्वुर[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  में भी आया न करो छूट जाने दो जो दामन-ए-वफ़ा छूट गया क्यूँ ये [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”सोच-सोच के चलना”]लग़ज़ीदा ख़रामी[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]… Continue reading अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर / कैफ़ी आज़मी

अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला / दुष्यंत कुमार

अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला मैंने भी सुना है अब जाएगा तेरा डोला इन राहों के पत्थर भी मानूस थे पाँवों से पर मैंने पुकारा तो कोई भी नहीं बोला लगता है ख़ुदाई में कुछ तेरा दख़ल भी है इस बार फ़िज़ाओं ने वो रंग नहीं घोला आख़िर तो अँधेरे की… Continue reading अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला / दुष्यंत कुमार

मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे / दुष्यंत कुमार

मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे थोडी आँच बची रहने दो थोडा धुँआ निकलने दो तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आयेंगे उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती… Continue reading मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे / दुष्यंत कुमार

घंटियों की आवाज़ कानों तक पहुंचती है / दुष्यंत कुमार

घंटियों की आवाज़ कानों तक पहुँचती है एक नदी जैसे दहानों तक पहुँचती है अब इसे क्या नाम दें, ये बेल देखो तो कल उगी थी आज शानों तक पहुँचती है खिड़कियां, नाचीज़ गलियों से मुख़ातिब है अब लपट शायद मकानों तक पहुँचती है आशियाने को सजाओ तो समझ लेना, बरक कैसे आशियानों तक पहुँचती… Continue reading घंटियों की आवाज़ कानों तक पहुंचती है / दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत / दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं… Continue reading हो गई है पीर पर्वत / दुष्यंत कुमार

किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम / दुष्यंत कुमार

किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम किसी का हाथ उठ्ठा और अलकों तक चला आया वो बरगश्ता थे कुछ हमसे उन्हें क्योंकर यक़ीं आता चलो अच्छा हुआ एहसास पलकों तक चला आया जो हमको ढूँढने निकला तो फिर वापस नहीं लौटा तसव्वुर ऐसे ग़ैर—आबाद हलकों तक चला आया लगन ऐसी… Continue reading किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम / दुष्यंत कुमार