रसीले दागी आम को भी टोकरी से बाहर निकाल देते हैं लेकिन दागी आदमी जिसके पीछे लगा हो अमरीका सारे दाग मिटा देता है बूढ़ों को मिल जाती हैं कमसिन कुंवारी कलियां मसलने को, खुद को चरित्रवान खानदानी और महान संस्कृति के वारिस कहलाने वाले बच्चों वाली तलाकशुदा, बड़ी या कम उम्र की औरतों से… Continue reading अमरीका में ब्याहने की कीमत अदा करने / अंजना संधीर
Author: poets
मैं एक व्यक्ति हूं / अंजना संधीर
मैं एक व्यक्ति हूं मेरी मर्जी है, जिस से चाहूं इच्छा से मिलूं मां बनूं या गर्भपात करवा लूं बच्चे को पिता का नाम दूं या न दूं मुझे अधिकार है अपना जीवन खुद जियूं किसी की मर्जी मुझ पर थोपी नहीं जा सकती मैंने यह इस धरती पर आकर जाना है इसीलिये मैं अब… Continue reading मैं एक व्यक्ति हूं / अंजना संधीर
हिमपात नहीं हिम का छिड़काव हुआ है / अंजना संधीर
कोलंबिया की सीढ़ियों से उतरते हुए शाम के नज़ारों ने रोक दिए कदम ठंडी हवा के झोंके ने सरसराहट पैदा की बदन में और आँखों को भा गई पक्के रास्तों के आसपास बनी मिट्टी की खेतनुमाँ घास की तराशी हुई क्यारियाँ जिन की हरी-हरी घास पर कुदरत ने किया है हिम का छिड़काव पक्के रास्ते… Continue reading हिमपात नहीं हिम का छिड़काव हुआ है / अंजना संधीर
ज़िंदगी अहसास का नाम है / अंजना संधीर
याद आते हैं गर्मियों में उड़ते हुए रेत के कण हवा चलते ही अचानक उड़कर, पड़ते थे आँख में और कस के बंद हो जाती थी अपने आप आँखें पहुँच जाते थे हाथ अपने आप आँखों पर धूल से आँखों को बचाने के लिए कभी पड़ जाता था कोई कण तो चुभने लगता था आँख… Continue reading ज़िंदगी अहसास का नाम है / अंजना संधीर
चलो, फिर एक बार / अंजना संधीर
चलो फिर एक बार चलते हैं हक़ीक़त में खिलते हैं फूल जहाँ महकता है केसर जहाँ सरसों के फूल और लहलहाती हैं फसलें हँसते हैं रंग-बिरंगे फूल मंड़राती हैं तितलियाँ छेड़ते हैं भँवरें झूलती हैं झूलों में धड़कनें घेर लेती हैं सतरंगी दुप्पटों से सावन की फुहारों में चूमती है मन को देती है जीवन… Continue reading चलो, फिर एक बार / अंजना संधीर
कभी रुक कर ज़रूर देखना / अंजना संधीर
पतझड़ के सूखे पत्तों पर चलते हुए जो संगीत सुनाई पड़ता है पत्तों की चरमराहट का ठीक वैसी ही धुनें सुनाई पड़ती हैं भारी भरकम कपड़ों से लदे शरीर जब चलते हैं ध्यान से बिखरी हुई स्नो पर जो बन जाती है बर्फ़ कहीं ढीली होती है ये बर्फ़ तो छपाक-छपाक की ध्वनि उपजती है… Continue reading कभी रुक कर ज़रूर देखना / अंजना संधीर
ओवरकोट / अंजना संधीर
काले-लम्बे घेरदार ,सीधे विभिन्न नमूनों के ओवर कोट की भीड़ में मैं भी शामिल हो गई हूँ। सुबह हो या शाम, दोपहर हो या रात बर्फ़ीली हड्डियों में घुसती ठंडी हवाओं को घुटने तक रोकते हैं ये ओवरकोट। बसों में,सब वे स्टेशनों पर इधर-उधर दौड़ते तेज कदमों से चलते ये कोट, बर्फ़ीले वातावरण में अजब-सी… Continue reading ओवरकोट / अंजना संधीर
सभ्य मानव / अंजना संधीर
ईसा! मैं मानव हूँ। तुम्हें इस तरह सूली से नीचे नहीं देख सकता! नहीं तो तुममें और मुझमें क्या अंतर? बच्चों ने आज कीलें निकाल कर तुम्हें मुक्त कर दिया क्योंकि नादान हैं वे तुम्हारा स्थान कहाँ है वे नहीं जानते वे तो हैरान हैं तुम्हें इस तरह कीलों पर गड़ा देखकर मौका पाते ही,… Continue reading सभ्य मानव / अंजना संधीर
कैसे जलेंगे अलाव / अंजना संधीर
ठंडे मौसम और ठडे खानों का यह देश धीर-धीर मानसिक और शारीरिक रूप से भी कर देता है ठंडा। कुछ भी छूता नहीं है तब कँपकँपाता नहीं है तन धड़कता नहीं है मन मर जाता है यहाँ , मान, सम्मान और स्वाभिमान। बन जातीं हैं आदतें दुम हिलाने की अपने ही बच्चों से डरने की… Continue reading कैसे जलेंगे अलाव / अंजना संधीर
तुम अपनी बेटियों को… / अंजना संधीर
तुम अपनी बेटियों को इन्सान भी नहीं समझते क्यों बेच देते हो अमरीका के नाम पर? खरीददार अपने मुल्क में क्या कम हैं कि… बीच में सात समुंदर पार डाल देते हो? जहाँ से सिसकियाँ भी सुनाई न दे सकें डबडबाई आँखें दिखाई न दे सकें न जहाँ तुम मिलने जा सको न कोई तुम्हें… Continue reading तुम अपनी बेटियों को… / अंजना संधीर