रास्ता / अंजू शर्मा

वह हैरान है, प्रलोभनों की रंगीन पतंगें उसके मुंह फेर लेने पर क्यों बदल जाती हैं धमकियों और साजिशों के उकाबों में, वायदों से सजी और ऊँचाइयों के ख्वाब दिखाती, सदैव प्रस्तुत वे सीढियां, अनदेखा करने पर क्यों बदल जाती हैं कीचड भरे, आरोपों से मलीन गंदे रास्तों में, एक औरत का स्वयं अपना रास्ता… Continue reading रास्ता / अंजू शर्मा

मन / अंजू शर्मा

मेरा मन जैसे खेत में खड़ा एक बिजुका महसूसता है हर पल तुम्हारी आवन-जावन को बिना कोई सवाल किये… और भावनाएं जैसे पीहर में बैठी विवाहिता गिन रही हो गौने के दिन, बार बार देखती हुई टूटा बक्सा और मुट्ठी भर नोट… फिर भी उम्मीदें जैसे खेत की मेड़ों पर घूमते धूसरित कदम दौड़ पड़ते… Continue reading मन / अंजू शर्मा

मृत्यु और मेरा शहर / अंजू शर्मा

बचपन में पढ़ी गीता का अर्थ मैं जान पाई बहुत देर बाद, मेरे शहर में जहाँ जीवन क्षणभंगुर है और मृत्यु एक सच्चाई है… दादाजी कहा करते थे मृत्यु से छ माह पहले दिखना बंद हो जाता है ध्रुवतारा, मेरे शहर की चकाचौंध ने लील लिया ध्रुवतारे की चमक को जाने कितनी ही छमाहियों पहले… Continue reading मृत्यु और मेरा शहर / अंजू शर्मा

पब से निकली लड़की / अंजू शर्मा

पब से निकली लड़की नहीं होती है किसी की माँ, बेटी या बहन, पब से निकली लड़की का चरित्र मोहताज हुआ करता है घडी की तेजी से चलती सुइयों का, जो अपने हर कदम पर कर देती हैं उसे कुछ और काला, पब से निकली लड़की के पीछे छूटी लक्ष्मणरेखाएं हांट करती हैं उसे जीवनपर्यंत,… Continue reading पब से निकली लड़की / अंजू शर्मा

मेरी माँ / अंजू शर्मा

अपनी माँ का नाम मैंने कभी नहीं सुना लोग कहते हैं फलाने की माँ, फलाने की पत्नी और फलाने की बहू एक नेक औरत थी, किसी को नहीं पता माँ की आवाज़ कैसी थी, मेरे ननिहाल के कुछ लोग कहते हैं माँ बहुत अच्छा गाती थी, माँ की गुनगुनाहट ने कभी भी नहीं लाँघी थी… Continue reading मेरी माँ / अंजू शर्मा

जवाब / अंजू शर्मा

किसी का कवि होना क्या इतना बड़ा अपराध है, कि वह पाता रहे सजा अनकिये कृत्यों की दर्द वहां भी होता है नहीं मिलते जहाँ चोट के निशान, वेदना वहां भी होती है जहाँ मांगी जाती है माफ़ी अपने ही कातिलों से, घुटन वहां भी होती है, जब प्रतिकार को नहीं मिलती इज़ाज़त मुंह खोलने… Continue reading जवाब / अंजू शर्मा

एक स्त्री आज जाग गयी है / अंजू शर्मा

(1) रात की कालिमा कुछ अधिक गहरी थी, डूबी थी सारी दिशाएं आर्तनाद में, चक्कर लगा रही थी सब उलटबांसियां, चिंता में होने लगी थी तानाशाहों की बैठकें, बढ़ने लगा था व्यवस्था का रक्तचाप, घोषित कर दिया जाना था कर्फ्यू, एक स्त्री आज जाग गयी है… (2) कोने में सर जोड़े खड़े थे साम-दाम-दंड-भेद, ऊँची… Continue reading एक स्त्री आज जाग गयी है / अंजू शर्मा

कद / अंजू शर्मा

बौनों के देश में सच के कद को बर्दाश्त करना सबसे बड़ा अपराध था, प्रतिमाओं को खंडित कर कद को छोटा करना ही राष्ट्रीय धर्म था, कालातीत होना ही नियति थी ऐसी सब ऊँचाइयों की जो अहसास दिलाती थी कि वे बौने हैं, हर लकीर के बगल में जब भी खींची जानी चाहिए थी कोई… Continue reading कद / अंजू शर्मा

लड़कियां कितनी जल्दी बूढी हो जाती हैं / अंजू शर्मा

ऐनक के पीछे से झांकती थी चुन्धाती पहाड़ी आँखें, हँसते ही कुछ बंद हो ढक जाती थी पलकों की चिलमन के पीछे, समझाते हुए आचार के मसालों अनुपात मेरे वे रिश्तेदार अम्माजी खो जाया करती थीं अतीत के वैभव में, सोलह साल की अबोध तरुणी बांध दी गयी अड़तालीस के प्रौढ़ के पल्ले, मैं मसालों… Continue reading लड़कियां कितनी जल्दी बूढी हो जाती हैं / अंजू शर्मा

क्षमा / अंजू शर्मा

वह गलत थी, वह भी गलत था, वे दोनों गलत थे, उस अनुचित, निषिद्ध रास्ते पर चलते चलते, एक दिन सजा का मुक़र्रर हुआ, वह पा गयी सजा अपने कुकृत्यों की अप्सरा सी देह पल भर में बदल गयी राख के अवांछित ढेर में, ये तो होना ही था, और पुरुष वह आगे बढ़ गया… Continue reading क्षमा / अंजू शर्मा