नींद में लौटने के लिए स्त्री अपनी दुनिया को समेटती है रात स्त्री की आँखों पर उतरती है बच्चा दौड़ता चला जाता है अपने स्वप्नों के बीच रात उसकी इच्छा को बघारती है रात को सीने में सहेजती युवती गौने का गीत गाती है और भोर की फ़सल अगोरता पुरुष रात को ओढ़ कर अनुभव… Continue reading रात / अक्षय उपाध्याय
Author: poets
धान रोपती स्त्री / अक्षय उपाध्याय
क्यों नहीं गाती तुम गीत हमारे क्यों नहीं तुम गाती बजता है संगीत तुम्हारे पूरे शरीर से आँखें नाचती हैं पृथ्वी का सबसे ख़ूबसूरत नृत्य फिर झील-सी आँखो में सेवार क्यों नहीं उभरते एक नहीं कई-कई हाथ सहेजते हैं तुम्हारी आत्मा को एक नहीं कई-कई हृदय केवल तुम्हारे लिए धड़कते हैं क्यों नहीं फिर तुम्हारा… Continue reading धान रोपती स्त्री / अक्षय उपाध्याय
इस मौसम में / अक्षय उपाध्याय
यह मौसम है फूलों का और बग़ीचे में चलती हैं बन्दूकें कहाँ हैं वे चिड़ियाएँ जो घोंसलों के लिए खर लिए बदहवास भागती हैं आसमान में ! यह मौसम है गाने क और मेरे घर में भूख नाचती है कहाँ हैं वे स्वर जो आदमी को बड़ा करने के लिए अपना रक्त लिए हवाओं में… Continue reading इस मौसम में / अक्षय उपाध्याय
पढ़ता हुआ बच्चा (दो) / अक्षय उपाध्याय
गिटार बजाती माँ का मन भी गिटार जैसा ही बजता है ? क़िताबों से घिरा बच्चा सोचता है । क़िताबों से गिटार बड़ा है माँ के कानों में हर बार कहने से पहले बच्चा खिलखिलाता है और संगीत की दुनिया में लपक जाता है बच्चा कॉपी पर पहला अक्षर क नहीं ग लिखता है ।
पढ़ता हुआ बच्चा (एक) / अक्षय उपाध्याय
बच्चे के बस्ते पर किताबें हैं और उसके खेल का तमंचा भी बच्चा भीतर के क़िताबी भय को तमंचे से उठाने के लिए ऊपर देखाता है पिता के सच को माँ की आँखों में झूठ बना देखता है बच्चा और क़िताबों में लौटने की कोशिश करता है बच्चे का बच्चा मन सोचता है क़िताब और… Continue reading पढ़ता हुआ बच्चा (एक) / अक्षय उपाध्याय
पुल / अक्षय उपाध्याय
अच्छा एक बात बताओ नदियों के सीने पर तने पुल क्या तुम्हें आदमी के ज़मीन से जुड़ने की इच्छा को नहीं बताते ये पुल जिनमें लाखों हाथ और आँखें चमकती हैं कुँआरी आँखों से रचे ये पुल क्या आदमी के आदिम गीत गाते हुए नहीं लगते भोले और भले पुल पृथ्वी को आदमी के लिए… Continue reading पुल / अक्षय उपाध्याय
वृक्ष / अक्षय उपाध्याय
लंबे फैले रास्तों के दोनों ओर खड़े इन वृक्षों को देखो तो लगेगा- ये कितने साहस से भरे हैं वर्षा और शीत में इनकी पत्तियाँ किस तरह झूमती हैं धूप में खड़े ये वृक्ष जंगल के पूरे हरेपन को नसों में लिए ज़मीन पर उगी घास को स्नेह देते हैं और उनको हक़ों के लिए… Continue reading वृक्ष / अक्षय उपाध्याय
एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती / अकील नोमानी
एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती इक उम्र हुई, दिल की लगी कम नही होती लगता है कहीं प्यार में थोड़ी-सी कमी थी और प्यार में थोड़ी-सी कमी कम नहीं होती अक्सर ये मेरा ज़ह्न भी थक जाता है लेकिन रफ़्तार ख़यालों की कभी कम नहीं होती था ज़ह्र को होंठों से लगाना… Continue reading एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती / अकील नोमानी
जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे / अकील नोमानी
जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे कभी तनहाइयों को तेरी महफ़िल, हम भी कहते थे हमें भी तजरिबा है कुफ्र की दुनिया में रहने का बुतों के सामने अपने मसाइल हम भी कहते थे यहाँ इक भीड़ अंजाने में दिन कहती थी रातों को उसी इक भीड़ में हम भी थे… Continue reading जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे / अकील नोमानी
हर शाम सँवरने का मज़ा अपनी जगह है / अकील नोमानी
हर शाम सँवरने का मज़ा अपनी जगह है हर रात बिखरने का मज़ा अपनी जगह है खिलते हुए फूलों की मुहब्बत के सफ़र में काँटों से गुज़रने का मज़ा अपनी जगह है अल्लाह बहुत रहमों-करम वाला है लेकिन लेकिन अल्लाह से ड़रने का मजा अपनी जगह है