पुल / अक्षय उपाध्याय

अच्छा
एक बात बताओ
नदियों के सीने पर तने पुल
क्या तुम्हें आदमी के
ज़मीन से जुड़ने की इच्छा को
नहीं बताते

ये पुल
जिनमें लाखों हाथ और आँखें चमकती हैं
कुँआरी आँखों से रचे

ये पुल
क्या आदमी के आदिम गीत गाते हुए
नहीं लगते

भोले और भले पुल
पृथ्वी को आदमी के लिए
छोटा बनाते हैं

वे पुल
हमारे गीत
हमारा प्यार
हमारी लड़ाइयों को
तत्काल
दूसरे मुहानों पर पहुँचाते हैं

ये पुल
हमारी ही प्रतीक्षा में
हर नरम-गरम मौसम में
कृतज्ञता से झुके हैं ।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *