है सब आतम सोयं / रैदास

है सब आतम सोयं प्रकास साँचो।
निरंतरि निराहार कलपित ये पाँचौं।। टेक।।
आदि मध्य औसान, येक रस तारतंब नहीं भाई।
थावर जंगम कीट पतंगा, पूरि रहे हरिराई।।१।।
सरवेसुर श्रबपति सब गति, करता हरता सोई।
सिव न असिव न साध अरु सेवक, उभै नहीं होई।।२।।
ध्रम अध्रम मोच्छ नहीं बंधन, जुरा मरण भव नासा।
दृष्टि अदृष्टि गेय अरु -ज्ञाता, येकमेक रैदासा।।३।।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *