हम को भी अपनी मौत का पूरा यक़ीन है / बशीर बद्र

हम को भी अपनी मौत का पूरा यक़ीन है
पर दुश्मनों के मुल्क में एक महजबीन है

सर पर खड़े हैं चाँद-सितारे बहुत मगर
इन्सान का जो बोझ उठा ले ज़मीन है

ये आख़री चराग़ उसी को बुझाने दो
इस बस्ती में वो सबसे ज़ियादा हसीन है

तकिये के नीचे रखता है तस्वीर की किताब
तहरीर-ओ-गुफ़्तुगू में जो इतना मतीन है

अश्कों की तरह थम गई जज़्बों कि नागिनें
बेदार मेरे होंठों पे लफ़्ज़ों की बीन है

यारों ने जिस पे अपनी दुकानें सजाई हैं
ख़ुशबू बता रही है हमारी ज़मीन है

तफ़सील क्या बतायें हमारे भी अहद में
तादाद शाइरों की वही ’पौने तीन’ है

(१९७२)

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