साँसों में चढ़ता उतरता है पल पल
महज़ एक शून्य,
कदम लड़खड़ाते घिसटते चलते हैं
बाढ़ में डूबे एक अदृश्य पथ पर,
लगता है
कि जैसे किसी असावधान पल में
आकाश का विराट अकेलापन ही पी गए,
और पता नहीं क्यों,
एक अच्छे जीवन की चाह में
इतना लम्बा स्थगित जीवन जी गए..