सूरज / सजीव सारथी

जब छोटा था,
तो देखता था,
उस सूखे हुए,
बिन पत्तों के
पेड़ की शाखों से,
सूरज…
एक लाल बॉल सा नज़र आता था,

आज बरसों बाद,
ख़ुद को पाता हूँ,
हाथ में लाल गेंद लिए बैठा –
एक बड़ी चट्टान के सहारे,
चट्टान मेरी तरह खामोश है,
और मैं जड़, उसकी तरह,
आज भी वो पेड़ मेरे सामने है,
और देखता हूँ
उसकी नंगी शाखों से परे,
चमकती हुई लाल गेंद,
आसमां पर लटकी हुई,

मेरी पहुँच से मीलों दूर…..

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