कई बार लगता है
अकेला पड़ गया हूँ
साथी-संगी विहीन
क्या हाने हनूँगा
तुम्हारे मन के लायक़
मैं कैसे बनूँगा
शक्ति तुमने दी है मगर
साथी तो चाहिए आदमी को
आदमी की इस कमी को समझो
उसके मन की इस नमी को समझो
जो सार्थक नहीं होती बिन साथियों के !
कई बार लगता है
अकेला पड़ गया हूँ
साथी-संगी विहीन
क्या हाने हनूँगा
तुम्हारे मन के लायक़
मैं कैसे बनूँगा
शक्ति तुमने दी है मगर
साथी तो चाहिए आदमी को
आदमी की इस कमी को समझो
उसके मन की इस नमी को समझो
जो सार्थक नहीं होती बिन साथियों के !