श्याम की शोभा / रामनरेश त्रिपाठी

श्याम के है अंग में तरंगित अनंत द्युति,
नित नित नूतन अकथनीय बात है।
नीलमनि कहना तो चित्त की कठोरता है,
भूले रजनी को तो कहे कि जलजात है॥
दृग से अधर तक दृष्टि न पहुँच पाती,
दृग में उधर आती नई करामात है।
जैसे जैसे ध्यान से हैं देखते समीप जाके
बार बार देखी अनदेखी होता ज्ञात है॥

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