विराट-वीणा / मैथिलीशरण गुप्त

तुम्हारी वीणा है अनमोल।।
हे विराट ! जिसके दो तूँबे
हैं भूगोल – खगोल।

दया-दण्ड पर न्यारे न्यारे,
चमक रहे हैं प्यारे प्यारे,
कोटि गुणों के तार तुम्हारे,
खुली प्रलय की खोल।
तुम्हारी वीणा है अनमोल।।

हँसता है कोई रोता है—
जिसका जैसा मन होता है,
सब कोई सुधबुध खोता है,
क्या विचित्र हैं बोल।
तुम्हारी वीणा है अनमोल।।

इसे बजाते हो तुम जब लों,
नाचेंगे हम सब तब लों,
चलने दो-न कहो कुछ कब लों,-
यह क्रीड़ा – कल्लोल।
तुम्हारी वीणा है अनमोल।।

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