वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है / हैदर अली ‘आतिश’

वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है
तिरी आँखों की बीमारी जो आगे थी सो अब भी है

वही नश-ओ-नुमा-ए-सब्ज़ा है गोर-ए-गरीबाँ पर
हवा-ए-चर्ख़ ज़ंगारी जो आगे थी सो अब भी है

तअल्लुक है वही ता हाल इन जुल्फों के सौदे से
सलासिल की गिरफ़्तारी जो आगे थी सो अब भी है

वही सर का पटकना है वही रोना है दिन भर का
वहीं रातों की बेदारी जो आगे थी सो अब भी है

रिवाज-ए-इश्क के आईं वही हैं किश्वर-ए-दिल में
रह-ओ-रस्म-ए-वफ़ा जारी जो आगे थी सो अब भी है

वही जी का जलाना है पकाना है वही दिल का
वो उस की गर्म-बाजारी जो आगे थी सो अब भी है

नियाज़-ए-ख़ादिमाना है वही फ़ज़्ल-ए-इलाही से
बुतों की नाज़-बरदारी जो आगे थी सो अब भी है

फ़िराक़-ए-यार में जिस तरह से मरता था मरता हूँ
वो रूह ओ तन की बेज़ारी जो आगे थी सो अब भी है

जुनूँ की गर्म-जोशी है वही दीवानों से अपनी
वही दाग़ों की गुल-कारी जो आगे थी सो अब भी है

वही बाज़ार-ए-गर्मी है मोहब्बत की हुनूज़ ‘आतिश’
वो यूसुफ की ख़रीदारी जो आगे थी सो अब भी है

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