ये हादसा भी षहर-ए-निगाराँ में हो गया / ‘हफ़ीज़’ बनारसी

ये हादसा भी शहर-ए-निगाराँ में हो गया
बे-चेहरगी की भीड़ में हर चेहरा खो गया

जिस को सज़ा मिली थी कि जागे तमात उम्र
सुनता हूँ आज मौत की बाँहों में सो गया

हरकत किसी में है न हरारत किसी में है
क्या शहर था जो बर्फ़ की चट्टान हो गया

मैं उस को नफरतों के सिवा कुछ न दे सका
वो चाहतों का बीज मिरे दिल में बो गया

मरहम तो रख सका न कोई मेरे ज़ख्म पर
जो आया एक नश्‍तर-ए-ताज़ा चुभो गया

या कीजिए कुबूल कि चेहरा ज़र्द है
या कहिए हर निगाह को यरकान हो गया

मैं ने तो अपने ग़म की कहानी सुनाई थी
क्यूँ अपने अपने गम में हर इक शख़्स खो गया

उस दुश्‍मन-ए-वफा को दुआ दे रहा हूँ मैं
मेरा न हो सका वो किसी का तो हो गया

इक माह-वश ने चूम ली पेशानी-ए-‘हफीज़’
दिलचस्प हादसा था जो कल रात हो गया

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