मोहन बिनु कौन चरैहैं गैया / लक्ष्मीनाथ परमहंस

मोहन बिनु कौन चरैहैं गैया ।
नहिं बलदेव नहिं मनमोहन रोवहिं यशोदा मौया ।
को अब भोरे बछरू खोलिहैं को जैहैं गोठ दुहैया ।
एकसरि नंद बबा क्या करिहिं दोसरो न काउ सहैया ।
को अब कनक कटोरा भरि-भरि माखन क्षीर लुटैया ।
को अब नाचि-नाचि दधि खैहैं को चलिहैं अधपैया ।
को अब गोप सखा संग खेलिहैं को ब्रज नागरि हँसैया ।
को गोपियन के चीर चोरैहैं को गहि मुरली बजैया ।
को अब इत उत तैं घर ऐहैं बबा-बबा गोहरैया ।
‘लक्ष्मीपति’ गोपाल लाल गुण सुमरि-सुमरि पछतैया ।

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