मोरे लय लगी गोपालसे मेरा काज कोन करेगा।
मेरे चित्त नंद लालछे॥ध्रु०॥१॥
ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों। मैं जप धर तुलसी मालछे॥२॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गला मोतनके माल छे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुट गई जंजाल छे॥४॥
मोरे लय लगी गोपालसे मेरा काज कोन करेगा।
मेरे चित्त नंद लालछे॥ध्रु०॥१॥
ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों। मैं जप धर तुलसी मालछे॥२॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गला मोतनके माल छे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुट गई जंजाल छे॥४॥