मुझे कल मेरा एक साथी मिला / अहमद नदीम क़ासमी

मुझे कल मेरा एक साथी मिला
जिस ने ये राज़ खोला
कि “अब जज्बा-ओ-शौक़ की वहशतों के ज़माने गए”

फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता चारों तरफ़ देखता
मुझ से कहने लगा

“अब बिसात-ए-मुहब्बत लपेटो
जहां से भी मिल जाएं दौलत – समटो
ग़र्ज कुछ तो तहज़ीब सीखो”

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