मुक्ति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा
पत्थर, की निकलो फिर,
गंगा-जल-धारा!
गृह-गृह की पार्वती!
पुनः सत्य-सुन्दर-शिव को सँवारती
उर-उर की बनो आरती!–
भ्रान्तों की निश्चल ध्रुवतारा!–
तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा!

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *