मन! कितना अभिनय शेष रहा / भारत भूषण

मन!
कितना अभिनय शेष रहा
सारा जीवन जी लिया, ठीक
जैसा तेरा आदेश रहा!

बेटा, पति, पिता, पितामह सब
इस मिट्टी के उपनाम रहे
जितने सूरज उगते देखो
उससे ज्यादा संग्राम रहे
मित्रों मित्रों रसखान जिया
कितनी भी चिंता, क्लेश रहा!

हर परिचय शुभकामना हुआ
दो गीत हुए सांत्वना बना
बिजली कौंधी सो आँख लगीं
अँधियारा फिर से और लगा
पूरा जीवन आधा–आधा
तन घर में मन परदेश रहा!

आँसू–आँसू संपत्ति बने
भावुकता ही भगवान हुई
भीतर या बाहर से टूटे
केवल उनकी पहचान हुई
गीत ही लिखो गीत ही जियो
मेरा अंतिम संदेश रहा!

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *