मद भरे ये नलिन / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

मद – भरे ये नलिन – नयनमलीन हैं;
अल्प – जल में या विकल लघु मीन हैं?
या प्रतीक्षा में किसी की शर्वरी;
बीत जाने पर हुये ये दीन हई?

या पथिक से लोल – लोचन! कह रहे-
“हम तपस्वी हैं, सभी दुख सह रहे।
गिन रहे दिन ग्रीष्म – वर्षा – शीत के;
काल -ताल- तरंग में हम बह रहे।

मौन हैं, पर पतन में- उत्थान में ,
वेणु – वर – वादन -निरत – विभु गान में
है छिपा जो मर्म उसका, समझते;
किन्तु फिर भी हैं उसी के ध्यान में।

आह! कितने विकल-जन-मन मिल चुके;
हिल चुके, कितने हृदय हैं खिल चुके।
तप चुके वे प्रिय – व्यथा की आंच में;
दुःख उन अनुरागियों के झिल चुके।

क्यों हमारे ही लिये वे मौन हैं?
पथिक, वे कोमल कुसुम हैं-कौन हैं?”

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