प्याला / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

(गीत)
मृत्यु-निर्वाण प्राण-नश्वर
कौन देता प्याला भर भर?

मृत्यु की बाधाएँ, बहु द्वन्द
पार कर कर जाते स्वच्छन्द
तरंगों में भर अगणित रंग,
जंग जीते, मर हुए अमर।

गीत अनगिनित, नित्य नव छन्द
विविध श्रॄंखल, शत मंगल-बन्द,
विपुल नव-रस-पुलकित आनन्द
मन्द मृदु झरता है झर झर।

नाचते ग्रह, तारा-मण्डल,
पलक में उठ गिरते प्रतिपल,
धरा घिर घूम रही चंचल,
काल-गुणत्रय-भय-रहित समर।

कांपता है वासन्ती वात,
नाचते कुसुम-दशन तरु-पात
प्रात, फिर विधुप्लावित मधु-रात
पुलकप्लुत आलोड़ित सागर।

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