परलोक / रामनरेश त्रिपाठी

जहाँ नहीं विद्वेष राग छल अहंकार है।
जहाँ नहीं वासना न माया का विकार है।
जहाँ नहीं विकराल काल का कुछ भी भय है।
जहाँ नहीं रहता जीवन का कुछ संशय है।

सुख-शांति-युक्त जिस देश में
बसे हुए हैं प्रिय स्वजन।
उस विमल अलौकिक देश में
पथिक! करोगे कब गमन॥

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