देशांतर विमान दो / श्रीनिवास श्रीकांत

रातों-रात बदल जाते हैं फैसले
रातों-रात दब जाता है आक्रोश
होटलों में
सहूलत की करवट लेती राजनीति
विचार बदलते कोण-दर-कोण
चाटता है सार्त्र

और मार्क्यूस को
सिरफिरों का हुजूम
रक्तपिता रहता शोषित जातियों का
एक नयी नस्ल का आदमी

काँच हवेलियों में बंद है
धूप का हर टुकड़ा
आकाश का हर कोण
अँजलियों के दर्पण
जीव की हर पहचान

दिमाग के स्टेडियम में
चक्कर काटतेलगातार

विचार के तीर
शतरंज की युक्तियाँ

सर्पाकार मार्गो पर दौड़ते रहते ह
मछलियों के पहिये लगातार
लगातार घूमती रहती ज़िन्दगियाँ

एक ही वृत्त के गिर्द बार-बार
गिरजाघर गिरजाघर है
मदरसे केवल मदरसे
कहीं कुछ नहीं होता
क्योंकि सेनेट नहीं रहे सेनेट
और श्वेत घर महज़ श्वेत घर है
जिनकी पीठ थपथपाते
धन कुबेरों के भेड़िया हाथ

हाथ नहीं पहुँचते
मफ़लिस चौराहों पर
जहाँ फटेहाल बिस्तर है
काले चाँदों की जन्माँध कलाएं
और जीने भर को पेट की आग

चुपचाप पीती है आग
अहाते के अंधेरे को
चुपचाप चूसती रहती है चींटियाँ
सड़ी हुई सभ्यताओं का रक्त
चुपचाप टंगा रहता है
गलियों के क़टे आसमान में
तपैदिक का पीलापन
कुरेदता है कैंसर की जड़ों को
प्रदूषण का पिशाच

पाँचवी मंज़िल की
तीसरी खिड़की पर
एक मुमताज़ आँख
एक हब्शी आत्मा
सोचती रहती
यह कौन देश जहाँ हम
यह कौन सा आकाश
कितनी दूर होगा
काला महाद्वीप
कितनी दूर होगी समुद्र राहें

कब पहुँचूँगा उस तट
आग उगलता पोत
पोतों को तट चाहिये
समुद्र को विस्तार

मगर काली आँख देखती है
आदमखोर नगर
बढ़ते हुए रेगिस्तान
जो हैं आदमी का दिग्भ्रम
जातियों का ख़ुमार
क्रोध की फ़ूहड हँसी
पागल भैंसे का दो टाँग नृत्य
हज़ारों योजन एरेना

चारों तरफ तमाशबीन भीड़
बीच में घिरी हुई एक आँख।

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