झर गये तुम्हारे पात / अज्ञेय

झर गये तुम्हारे पात
मेरी आशा नहीं झरी।
जर गये तुम्हारे दिये अंग
मेरी ही पीड़ा नहीं जरी।

मर गयी तुम्हारी सिरजी
जीवन-रसना-शक्ति-जिजीविषा मेरी नहीं मरी।
टर गये मेरे उद्यम, साहस-कर्म,
तुम्हारी करुणा नहीं टरी!

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