काली आँखों का अंधकार / जयशंकर प्रसाद

काली आँखों का अंधकार
जब हो जाता है वार पार,
मद पिए अचेतन कलाकार
उन्मीलित करता क्षितित पार-
वह चित्र ! रंग का ले बहार
जिसमे है केवल प्यार प्यार!
केवल स्मृतिमय चाँदनी रात,
तारा किरणों से पुलक गात
मधुपों मुकुलों के चले घात,
आता है चुपके मलय वात,
सपनो के बादल का दुलार.
तब दे जाता है बूँद चार.
तब लहरों- सा उठकर अधीर
तू मधुर व्यथा- सा शून्य चीर,
सूखे किसलय- सा भरा पीर
गिर जा पतझर का पा समीर.
पहने छाती पर तरल हार.
पागल पुकार फिर प्यार-प्यार!

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