आँखों से अलख जगाने को / जयशंकर प्रसाद

आँखों से अलख जगाने को,
यह आज भैरवी आई है .
उषा-सी आँखों में कितनी,
मादकता भरी ललाई है .
कहता दिगन्त से मलय पवन
प्राची की लाज भरी चितवन-
है रात घूम आई मधुबन ,
यह आलस की अंगराई है .
लहरों में यह क्रीड़ा-चंचल,
सागर का उद्वेलित अंचल .
है पोंछ रहा आँखें छलछल,
किसने यह चोट लगाई है ?

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