अभी से कैसे कहूँ तुम को बे-वफ़ा साहब / इन्दिरा वर्मा

अभी से कैसे कहूँ तुम को बे-वफ़ा साहब
अभी तो अपने सफ़र की है इब्तिदा साहब

न जाने कितने लक़ब दे रहा है दिल तुम को
हुज़ूर जान-ए-वफ़ा और हम-नवा साहब

तुम्हारी याद में तारे शुमार करती हूँ
न जाने ख़त्म कहाँ हो ये सिलसिला साहब

किताब-ए-ज़ीस्त का उनवान बन गए हो तुम
हमारे प्यार की देखो ये इंतिहा साहब

तुम्हारा चेहरा मेरे अक्स से उभरता है
न जाने कौन बदलता है आईना साहब

रह-ए-वफ़ा में ज़रा एहतियात लाज़िम है
हर एक गाम पे होता है हादसा साहब

सियाह रात है महताब बन के आ जाओ
ये ‘इंदिरा’ के लबों पर है इल्तिजा साहब