अकेले … और … अछूत / अंशु मालवीय

… हम तुमसे क्या उम्मीद करते
बाम्हन देव!
तुमने तो ख़ुद अपने शरीर के
बायें हिस्से को अछूत बना डाला,
बनाया पैरों को अछूत
रंभाते रहे मां … मां … और मां
और मातृत्व रस के
रक्ताभ धब्बों को बना दिया अछूत
हमारे चलने को कहा रेंगना
भाषा को अछूत बना दिया
छंद को, दिशा को
वृक्षों को, पंछियों को
समय को, नदियों को
एक-एक कर सारी सदियों को
बना दिया अछूत
सब कुछ बांटा
किया विघटन में विकास
और अब देखो बाम्हन देव
इतना सब कुछ करते हुए
आज अकेले बचे तुम
अकेले … और … अछूत.

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