अर्द्ध-उन्मीलित नयन, स्वप्निल, प्रहर भर रात रहते अधर कम्पित, संकुचित, मानो अधूरी बात कहते बात रहती है अधूरी आस रहती है अधूरी श्वास पूरे, पर अधूरी प्यास रहती है अधूरी इस अधूरी प्यास को ही स्वप्न की सौगात कहते अधर कम्पित, संकुचित, मानो अधूरी बात कहते स्वप्न की परतें खुलीं तो सत्य के समकक्ष पाया… Continue reading अर्द्ध-उन्मीलित नयन / घनश्याम चन्द्र गुप्त
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समोसे / घनश्याम चन्द्र गुप्त
बहुत बढ़ाते प्यार समोसे खा लो, खा लो यार समोसे ये स्वादिष्ट बने हैं क्योंकि माँ ने इनका आटा गूंधा जिसमें कुछ अजवायन भी है असली घी का मोयन भी है चम्मच भर मेथी है चोखी जिसकी है तासीर अनोखी मूंगफली, काजू, मेवा है मन भर प्यार और सेवा है आलू इसमें निरे नहीं हैं… Continue reading समोसे / घनश्याम चन्द्र गुप्त
तुम असीम / घनश्याम चन्द्र गुप्त
रूप तुम्हारा, गंध तुम्हारी, मेरा तो बस स्पर्श मात्र है लक्ष्य तुम्हारा, प्राप्ति तुम्हारी, मेरा तो संघर्ष मात्र है तुम असीम, मैं क्षुद्र बिन्दु सा, तुम चिरजीवी, मैं क्षणभंगुर तुम अनन्त हो, मैं सीमित हूँ, वट समान तुम, मैं नव अंकुर तुम अगाध गंभीर सिन्धु हो, मैं चँचल सी नन्हीं धारा तुम में विलय कोटि… Continue reading तुम असीम / घनश्याम चन्द्र गुप्त
घड़ी की सुईयां/ घनश्याम चन्द्र गुप्त
घड़ी की सुईयां निर्विकार चलती हैं न तुमसे कुछ प्रयोजन, न मुझसे श्वासों का क्रम गिनती पूरी होने तक निर्बाध याम पर याम, याम पर याम महाकाल की ओर इंगित करती हैं सुईयां घड़ी की
उसकी याद / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
बहुत दिनों तक नहीं सुनी आम की सबसे निचली डाली पर पसरी कोयल की कूक बहुत दिनों तक चलता रहा नाक की सीध में नहीं देखा आयें-बाएँ- दायें नहीं देखा पलटकर किसी को झुकाकर गर्दन नहीं देखा जमीन पर फैले कचरे के खजाने को और न ही सर उठाकर देखा आसमान को उसके असीम वज़ूद… Continue reading उसकी याद / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
इससे पहले कि / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
सूरज के डूबने और उगने के बीच मैं तैयार कर लेना चाहता हूँ रौशनी के मुट्ठी भर बीज जिन्हें सवेरा होते ही दफना सकूँ मैं धरती के सबसे उर्वर हिस्से में गोद लेना चाहता हूँ कविता के कुछ नए शब्द उम्मीद और ताकत से भरे हुए जिन्हें आने वाली पीढ़ी की नर्म हथेली पर छोड़… Continue reading इससे पहले कि / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
बाज़ार / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
ज़िंदा रहेंगे वे लोग ही जिनके गले में टंगा होगा महँगा प्राइस-टैग ज़िन्दा रहेंगे वे लड़के-लडकियाँ ही जो बाज़ारू भाषा में नाचना-मटकना मुस्कुराना और तुतलाना सीखेंगे ज़िन्दा रहेंगी वही झीलें,नदियाँ और पोखर जो बोतल-बंद पानी उद्योग के लिए काम के सिद्ध होंगे ज़िन्दा रहेंगे वे पहाड़ और समंदर ही जो नंगे टूरिस्टों की भीड़ जुटाने… Continue reading बाज़ार / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
एकाकी / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
जब मैं तुम्हारा साथ पाने के लिए कह रहा था कि मैं अकेला हूँ अकेला नहीं था शायद उस वक़्त भी, मेरी दो बाजुओं पर पुरवैया और पछियाव आसमान में उड़ते सुग्गों की तरह आकर सुस्ताते थे सिर पर ठुड्डी टिकाता था सूरज और पृथ्वी चलती थी अपनी धुरी पर फुदकती हुई मेरे साथ, लेकिन… Continue reading एकाकी / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
जब तुम चली जाओगी / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
जब तुम चली जाओगी तुम्हारी गली में सूरज तब भी उगेगा यथावत, चाँद सही समय पर दस्तक देना नहीं भूलेगा, फूल खिलना नहीं छोड़ देंगे, हवाओं में ताजगी तब भी बनी रहेगी, बच्चे तुम्हारे घर के नीचे वैसे ही खेलते मिला करेंगे पड़ोस के अंकल-आंटी ठीक पहले की तरह झगड़ते रहेंगे, अखबार वाला बिना नागा… Continue reading जब तुम चली जाओगी / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
जुगनू / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
तुम्हारी आँखों के जुगनू एक दिन मैंने अपनी पलकों में कैद कर लिए उस दिन से रात कभी हुई ही नहीं..