तब रांम रांम कहि गावैगा। ररंकार रहित सबहिन थैं, अंतरि मेल मिलावैगा।। टेक।। लोहा सम करि कंचन समि करि, भेद अभेद समावैगा। जो सुख कै पारस के परसें, तो सुख का कहि गावैगा।।१।। गुर प्रसादि भई अनभै मति, विष अमृत समि धावैगा। कहै रैदास मेटि आपा पर, तब वा ठौरहि पावैगा।।२।।
राम बिन संसै गाँठि न छूटै / रैदास
राम बिन संसै गाँठि न छूटै। कांम क्रोध मोह मद माया, इन पंचन मिलि लूटै।। टेक।। हम बड़ कवि कुलीन हम पंडित, हम जोगी संन्यासी। ग्यांनी गुनीं सूर हम दाता, यहु मति कदे न नासी।।१।। पढ़ें गुनें कछू संमझि न परई, जौ लौ अनभै भाव न दरसै। लोहा हरन होइ धँू कैसें, जो पारस नहीं… Continue reading राम बिन संसै गाँठि न छूटै / रैदास
नरहरि चंचल मति मोरी / रैदास
नरहरि चंचल मति मोरी। कैसैं भगति करौ रांम तोरी।। टेक।। तू कोहि देखै हूँ तोहि देखैं, प्रीती परस्पर होई। तू मोहि देखै हौं तोहि न देखौं, इहि मति सब बुधि खोई।।१।। सब घट अंतरि रमसि निरंतरि, मैं देखत ही नहीं जांनां। गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपगार न मांनां।।२।। मैं तैं तोरि मोरी… Continue reading नरहरि चंचल मति मोरी / रैदास
अखि लखि लै नहीं / रैदास
अखि लखि लै नहीं का कहि पंडित, कोई न कहै समझाई। अबरन बरन रूप नहीं जाके, सु कहाँ ल्यौ लाइ समाई।। टेक।। चंद सूर नहीं राति दिवस नहीं, धरनि अकास न भाई। करम अकरम नहीं सुभ असुभ नहीं, का कहि देहु बड़ाई।।१।। सीत बाइ उश्न नहीं सरवत, कांम कुटिल नहीं होई। जोग न भोग रोग… Continue reading अखि लखि लै नहीं / रैदास
ऐसौ कछु अनभै कहत न आवै / रैदास
ऐसौ कछु अनभै कहत न आवै। साहिब मेरौ मिलै तौ को बिगरावै।। टेक।। सब मैं हरि हैं हरि मैं सब हैं, हरि आपनपौ जिनि जांनां। अपनी आप साखि नहीं दूसर, जांननहार समांनां।।१।। बाजीगर सूँ रहनि रही जै, बाजी का भरम इब जांनं। बाजी झूठ साच बाजीगर, जानां मन पतियानां।।२।। मन थिर होइ तौ कांइ न… Continue reading ऐसौ कछु अनभै कहत न आवै / रैदास
भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो / रैदास
भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो। सति रांम ताकै निकटि न आवो।। टेक।। राम कहत जगत भुलाना, सो यहु रांम न होई। करंम अकरंम करुणांमै केसौ, करता नांउं सु कोई।।१।। जा रामहि सब जग जानैं, भ्रमि भूले रे भाई। आप आप थैं कोई न जांणै, कहै कौंन सू जाई।।२।। सति तन लोभ परसि जीय… Continue reading भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो / रैदास
आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां / रैदास
आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां। जांनि क्रिया कीजै अपनों जनां।। टेक।। त्रिबिधि जोनी बास, जम की अगम त्रास, तुम्हारे भजन बिन, भ्रमत फिर्यौ। ममिता अहं विषै मदि मातौ, इहि सुखि कबहूँ न दूभर तिर्यौं।।१।। तुम्हारे नांइ बेसास, छाड़ी है आंन की आस, संसारी धरम मेरौ मन न धीजै। रैदास दास की सेवा मांनि हो… Continue reading आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां / रैदास
त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे / रैदास
त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे, अंतरि ल्यौ लागी। एक अनूपम अनभई, किम होइ बिभागी।। टेक।। इक अभिमानी चातृगा, विचरत जग मांहीं। जदपि जल पूरण मही, कहूं वाँ रुचि नांहीं।।१।। जैसे कांमीं देखे कांमिनीं, हिरदै सूल उपाई। कोटि बैद बिधि उचरैं, वाकी बिथा न जाई।।२।। जो जिहि चाहे सो मिलै, आरत्य गत होई। कहै रैदास यहु गोपि… Continue reading त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे / रैदास
भाई रे भ्रम भगति सुजांनि / रैदास
भाई रे भ्रम भगति सुजांनि। जौ लूँ नहीं साच सूँ पहिचानि।। टेक।। भ्रम नाचण भ्रम गाइण, भ्रम जप तप दांन। भ्रम सेवा भ्रम पूजा, भ्रम सूँ पहिचांनि।।१।। भ्रम षट क्रम सकल सहिता, भ्रम गृह बन जांनि। भ्रम करि करम कीये, भरम की यहु बांनि।।२।। भ्रम इंद्री निग्रह कीयां, भ्रंम गुफा में बास। भ्रम तौ लौं… Continue reading भाई रे भ्रम भगति सुजांनि / रैदास
तेरा जन काहे कौं बोलै / रैदास
तेरा जन काहे कौं बोलै। बोलि बोलि अपनीं भगति क्यों खोलै।। टेक।। बोल बोलतां बढ़ै बियाधि, बोल अबोलैं जाई। बोलै बोल अबोल कौं पकरैं, बोल बोलै कूँ खाई।।१।। बोलै बोल मांनि परि बोलैं, बोलै बेद बड़ाई। उर में धरि धरि जब ही बोलै, तब हीं मूल गँवाई।।२।। बोलि बोलि औरहि समझावै, तब लग समझि नहीं… Continue reading तेरा जन काहे कौं बोलै / रैदास