चला आँखों में जब कश्ती में वो महबूब आता है / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

चला आँखों में जब कश्ती में वो महबूब आता है कभी आँखें भर आती हैं कभी जी डूब जाता है कहो क्यूँकर न फिर होवेगा दिल रौशन ज़ुलेख़ा का जहाँ यूसुफ़ सा नूर-ए-दीदा-ए-याक़ूब जाता है जहाँ के ख़ूब-रू मुझ से चुराएँ क्यूँ न फिर आँखें जो कोई ख़ुर्शीद को देखे सो वो महजूब जाता है… Continue reading चला आँखों में जब कश्ती में वो महबूब आता है / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते जो हम भी छूट जाते अब तो क्या दीवाना-पन करते तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रूख़्सत नहीं देता जो टुक दम मार सकते हम तो कुछ फ़िक्र-ए-सुख़न करते नहीं जूँ पंजा-ए-गुल कुछ भी इन हाथों में गीराई वगरना ये गरेबाँ नज़्र-ए-ख़ूबान-ए-चमन करते मुसाफ़िर हो के आए हैं जहाँ… Continue reading बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन