चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / भावरा ग्राम-धरा / पृष्ठ १

मंजरित इस आम्र-तरु की छाँह में बैठो पथिक! तुम, मैं समीरण से कहूँ, वह अतिथि पर पंखा झलेगा। गाँव के मेहमान की अभ्यर्थना है धर्म सबका, वह हमारे पाहुने की भावनाओं में ढलेगा। नागरिक सुकुमार सुविधाएँ, सुखद अनुभूतियाँ बहु, दे कहाँ से तुम्हें सूखी पत्तियों का यह बिछावन। आत्मा की छाँह की, पर तुम्हें शीतलता… Continue reading चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / भावरा ग्राम-धरा / पृष्ठ १

चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / क्रांति दर्शन / पृष्ठ २

होश खोकर, जोश जो निर्दोष लोगों को सताए, पाप है वह जोश, ऐसे जोश में आना बुरा है। यदि वतन के दुश्मनों का खून पीने जोश आए, इस तरह के जोश से फिर होश में आना बुरा है। बढ़ रहे संकल्प से हम, लक्ष्य अपने सामने है, साथ है संबल हमारे, वतन की दीवानगी का।… Continue reading चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / क्रांति दर्शन / पृष्ठ २

चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / क्रांति दर्शन / पृष्ठ १

कौन कहता है कि हम हैं सरफिरे, खूनी, लुटेरे? कौन यह जो कापुस्र्ष कह कर हमें धिक्कारता हैं? कौन यह जो गालियों की भर्त्सना भरपेट करके, गोलियों से तेज, हमको गालियों से मारता है। जिन शिराओं में उबलता खून यौवन का हठीला, शान्ति का ठण्डा जहर यह कौन उनमें भर रहा है? मुक्ति की समरस्थली… Continue reading चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / क्रांति दर्शन / पृष्ठ १

चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / आत्म दर्शन / पृष्ठ १

चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं, फूटते ज्वालामुखी-सा, क्रांति का उद्घोष हूँ मैं। कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर है, चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं। विवश अधरों पर सुलगता गीत हूँ विद्रोह का मैं, नाश के मन पर नशे जैसा चढ़ा उन्माद हूँ मैं। मैं गुलामी का… Continue reading चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / आत्म दर्शन / पृष्ठ १