नई डायरी / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’

नई डायरी मुझे मिली है! इसमें अपना नाम लिखूँगा जो करने वो काम लिखूँगा, किसने मारा किसने डाँटा बदनामों के नाम गिनूँगा। खुशियों की इक कली खिली है, नई डायरी मुझे मिली है! कार्टून हैं मुझे बनाने हस्ताक्षर करने मनमाने, आप अगर रुपए देंगे तो सेठ बनेंगे जाने-माने। भेंट दीजिए, कलम हिली है, नई डायरी… Continue reading नई डायरी / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’

टिली लिली / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’

मैं ढपोर हूँ शंख बिना, ताक धिना-धिन, ताक धिना। मुझे अचानक परी मिली, आसमान में जुही खिली। टिली लिली जी टिली लिली मैं जाऊँगा पंख बिना ताक धिना धिन, ताक धिना! अगड़म-बगड़म बंबे बो, अस्सी, नब्बे, पूरे सौ। गेहूँ बोया, काटा जौ, उगा पेड़ कब बीज बिना ताक धिना-धिन, ताक धिना! बछड़ा भागा, भागी गौ,… Continue reading टिली लिली / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’

दादी के दाँत / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’

असली दाँत गिर गए कब के नकली हैं मजबूत, इनके बल पर मुस्काती है क्या अच्छी करतूत। बड़े बड़ों को आड़े लेती सब छूते हैं पैर, नाकों चने चबाने पड़ते जो कि चाहते खैर। उनका मुँह अब नहीं पोपला सही सलामत आँत, कभी नहीं खट्टे हो सकते दादी जी के दाँत।

कंतक थैया / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’

कंतक थैया घुनूँ मनइयाँ! चंदा भागा पइयाँ पइयाँ! यह चंदा चरवाहा है, नीले-नीले खेत में! बिल्कुल सैंत मैंत में, रत्नों भरे खेत में! किधर भागता, लइयाँ पइयाँ! कंतक थैया, घुनूँ मनइयाँ! अंधकार है घेरता, टेढ़ी आँखें हेरता! चाँद नहीं मुँह फेरता, रॉकेट को है टेरता! मुन्नू को लूँगा मैं दइयाँ! कंतक थैया घुनूँ मनइयाँ! मिट्टी… Continue reading कंतक थैया / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’